आपाणो राजस्थान
AAPANO RAJASTHAN
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धरती धोरा री धरती मगरा री धरती चंबल री धरती मीरा री धरती वीरा री
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राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

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छीतर लाल साँखला (सी.एल. सांखला)

नांव : छीतर लाल साँखला
आयु : 46 वर्ष
पिता : स्व.गोपी लाल जी साँखला
माता : श्रीमती शांति बाई
जन्मस्थान: टाकवाडा, जिला कोटा

साहित्यसृजन
पिछले 28 वर्षो से सृजनरत। निबंध, फिचर, समीक्षा, व्यंग्य, संस्मरण, एकांकी कहानी, लघुकथा, के अलावा कविता एवं गीत आदि हिदी और राजस्थानी में भी रचित।

प्रकाशितकृतियाँ
दे रही दस्तक हवायें (काव्य संग्रह)
कलजुग (राजस्थानी काव्य संग्रह)
सरित्प्रवाह (काव्य संग्रह)
हाडौती की कहानियां (लोक कथा)
सवंद की तागद (राजस्थानी निबंध संग्रह)
समरस धारा (काव्य संग्रह)

पत्र-पत्रिकाओमें
देश भर में प्रकाशित श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओ में पिछले ढाई दशको से सैकडोंें रचनाएं प्रकाशित।

भूमिकालेखन
छोटक्या पे टोटाक्या (राजस्थानी कविता)
मंूडो देख'र तलक (चंदा लाल चकवाला)
अमरत को धोरो
मेघमाळ (देवकी दर्पण)

सम्पादन
शब्द प्रभात : (राष्ट्रीय रचनाकार परिचय एवं सृजन)
राष्ट्रीय सकलनों में : लगभग 80 सकलनों में रचनाएं शामिल।
संयोजक : राष्ट्रीय शिक्षक रचनाकार प्रगति मंच।
आयोजन : साहित्यिक कार्यक्रमों के आयोजन में पहल।
विशेष सेवा : शिक्षा जगत के शैक्षिक कार्यो में सक्रिय योगदान।
सम्प्रति : शिक्षक।

सम्मानोपाधि
डा. अम्बेडकर फैलोशिप सम्मान : 1999 (नई दिल्ली)
राष्ट्रसचेतक : 2002 (हैदराबाद)
ऋ तम्भरा सम्मान : 2004 दुर्ग (म.प्र.)
राष्ट्रभाषा गद्य साहित्य सम्मान : 2004 (ऋ षिकेश)
'काव्य भूषण' : 2004 सतना (म.प्र.)
'शिक्षाविद' : 2003 राजसमंद (राज.)

सम्पर्क
शब्दवन,
पोस्ट टाकरवाडा
जिला - कोटा
राज. - 325204


आपणो राजस्थान
(मौलिक अर अप्रकाशित रचना)

नेह प्रेम अर सदभावना सूं बाणियो आपणो राजस्थान
पन्ना-मीरा का भावां सूं भरियो आपणो राजस्थान
बन-बन घूम्यां राणा जी भी मान बचावण माटी रो
वीर वरां री ग़ाथावां सूं भरयो आपाणो राजस्थान
टकरा जावै जे दल्ली सूं दुरगादास अठै छै
धन सारो जे अरपण कर दै, भामाशाह अठे छै
छै रुपवती पदमण राणी जे कूदै झग्गाती ला में
छै हाडी राणी लै खंजर जे शीश उतारै महलां ंमें
बह रह्यो रगत हळदी घाटी थां घूम घूम क देखो तो
ओ वीर प्रतापी तलवारां सूं लडयो आपणो राजस्थान
संकराती सूरज की लाली सुपना नुवा जगा जावै
घर घर होळी ओर दिवाळी दिवला णूया जळा जावै
कलक्यां आसमान मं उडती ढ़ोल मजीरा गळी गळी
खेता की जब फसला मुळकी खिल जावै छै कळी कळी
उडै अबीरा ओर गुलालां रात्युं चालै फूलझडयां
रंग रंगीला चतरामां सूं सज्यो आपणो राजस्थान

प्रेम प्यार छै अठी अनूठो ढ़ोला मरवण की गाथां मं
झरै ओस का मोती जाणै गोरी गजवण की बातां मं
झीणा सां घूंघट मं मुळके, कामण ग्यारी नार रूपाळी
ज्यारं बाजरी खेतां ऊभी करता रीज्यो राम रूखाळी
रुँख पखेरु घणा चहकता, चकवी-मोर-पपीया-कोयल
प्रीत गुटर गूं का भावां सूं भरयो आपणो राजस्थान
प्रेम भगति की राह बतावै मीरां अर रैदास अठै छै
बिस नै जे अमरित कर देवै, ऊ साचो बिसवास अठै छै
कारज सारै गजानंद जी, बीजासण अर चौथ भवानी
राम रूणीचा का बाबा नै ध्यावै छै सब ग्यानी ध्यानी
परदेशां सूं घणा जातरी आवै पुष्कर का मेळा मं
मन की सांची मनवारां सूं भरयो आपणो राजस्थान
ऊंट रूपाळा जैसलमेरी, जैपर लागै ज्यूं लाडी सा
जोधाणा की मैहल मेडिया, बीकानेर लागै दादी सा
बाढ़मेर की घणी बढ़ैआ कोटा बूंदी चामल सूं तर
उभो गढ़ चित्तौड स्यान सूं झालो-बारां बीं अपणो घर
झीला की नगरी उदियापुर अरावली की शोभा न्यारी
लाख ढ़ाणियां अर गांवा सूं बण्यो आपणो राजस्थान


किताब - सबदकीतागत (गद्यसंगै)

हाड़ौती की बरणमाला
डा. ग्रियर्सन का मत सूँ कोटा (बारां समेत), बून्दी परगना मं बोली जाबाहाली भासा 'हाड़ौती' छै। कोटा-बूंदी के अलवा हाड़ौती झालावाड़, टोंक जिलान मं बी बोली जावै छै। हाड़ौती छैत्तर को जिकर संम्वत 1650 मं फतमल का गीत में मिलै छै-'फतमल सू ही है हाड़ौती रो राव...' लिखत रूप मं होड़ौती को सरूप संवत 1897 (सन् 1841 ई) मं सूर्यमल मिस्सण का गरन्थ 'वंश भास्कर' में बणतो दीखै छै।

हाड़ौती की पड़ौसी बोल्यांमं नागरचाली, खेराड़ी, मालवी, मेवाड़ी सीपरी (श्योपुरी), सोंदवाड़ी, बू्‌न्देलखण्डी आद-आद परमुख छै। हाड़ौती का विसेस ग्याता डा. कन्हैयालाल जी शर्मा नैं ईं कोदो भाग बताया छै। एक उत्तरी हाड़ौती, दूजी दक्षिणी हाड़ौती। चम्बल नंदी के पैली आड़ी बूँदी परगना की उत्तरी हाड़ौती अर चम्बल सूँ आल्योड़ी कोटा-बरां की दक्सणी हाड़ौती मानी छै।


आज जस्यां आपां नै हिन्दी की वरणमाला पढ़बा में मिलै छै, उस्याँ ई हाड़ौती की वरणमाला बी पैहल्याँ पढाई जावै छी। ई सूँ 'कक्को' कैह छा। संस्क्रत का विदावन शरद वर्मा को 'कातंत्र रूपमाला' कही तरै हाड़ौती को 'सीदी' बी मिलै छै। ई मं सबी वरणा को बिधि विधान सूँ वरणन छै।

हाड़ौती का आखर (वरण) पैली 'बण्यां बाटी' (महाजान लिपि) में लिख्या जावै छा। 'बाण्याबाटी' का आखर 'मुडिया' रच्या जावै छा। यो नावं अकबर की टैम नै टोडरमल नै खाड्यो छो। बैव्यजन आखरां पै लागबाली मात्रावां 'कानामात' कहैलावै छी।

हाड़ौती को 'कक्को' (बरणमाला) गा-गा'र पढ्यो जीवै छो। ई-सूं पढ़बा हाला अर पढ़ाबा हाला कै तो आणंद आवै छो, सुणबा हाला बी घणा राजी होवै छा। कक्का नै सुण'र अणपढ़ मनख कै बी पढ़बा की हूँसजागै छी। कक्को कोरो मजादार ई कोइनै छो, यो मनोबग्यान का आधार पै बण्यो छो। कक्को ब्यैजनां में क आखर सूँ सरु होवै छो. ई बजै सूँ सूर (स्वर) नाला सिखाया जावै छा। हाड़ौता का परमुख सुर अनुनासिक रुप में ई मिलै छै, जे ई तरै सूं छै-
:अं:, :अँं:, :आं:, :ई:, :उं:, :ऊं:, :एं:, :अीं:। सुरां कै बारै कक्का में छत्सी तरै का व्यजन आखर होवै छै-
क, ख, ग, घ,ट्, ठ, ड्, ढ्, त्, थ्, प, फ, ब, भ-ये सोला बरण इस्परसी ब्यजन् ख्या गाय छै। अब इस्परस-घरसी व्यजन्न देखो-च्, छ्, ज्, झ, अनुनासिक व्यजन् ड्, ण्, न्, न्ह, म्, म्ह पाछली धुन वाला ब्यन्जन-ल, ह,लुठित ब्यन्जन-र, उत्फख ब्यैन्जन ड्, ल, घरषी ब्यैन्जन-स, ह अथसुरा ब्यैन्जन-य्, व, व्‌।
अधसुरा वरणा का मैल सूँ हाड़ौती मं ई तरै को आखर रूप बणै छै-
क् + य = क्या (+आ) = क्यारी
ख् + य् = ख्य (+आ) = ख्याणी
च् + य् = च्य(+आ) = च्यार
छ् + य् = छ्य (+आ) = छ्याच्
क् + व् = क्व(+आ) = क्वांड
स् + व् = स्व (+आ) = स्वालयो
दो समरूप ब्यन्जन या दो असमरूप ब्यैन्जनां् का मेल सूँ तो कतनाई शबद रूप दीखै छै-
ल + ल् = दल्ली, लल्लू, लल्लन
क् + क् = इक्को, दूक्को, झक्कन
प् + प् = पप्पी, पपपू, पप्पन, छप्पन
त् + त् = सत्त, पत्तर, सत्तर
न् + ड् = ठण्ड्, डण्ड, मुण्डन
ण् + य् = बाण्यो, काण्यो
न् + च् = पन्चर, बन्चर
ई तरै का सैकडूं शबद मिलै छै।

अब तीन ब्यैन्जनां का मैल सूं बणबाला सरूप उदारण का तौर पै देखो-
क् + ल् + य् = डसक्ल्या, मसक्ल्या, मरक्ल्यो
ट् + क् + य् = ओट्क्या, छोटक्या, टोट्क्यो
न् + ज् + य् = गन्ज्यो, सन्ज्यो, मन्ज्यो
न् + म् + य् = जम्न्यो, दम्न्यो
प् + क् + य् = लप्क्यो, झप्क्यो
ल् + क् + य् = पाल्क्यो
ल् + क् + य् = सालक्यो
स् + ल् + य् = खुड़सल्यो
अस्या कतना ई शबद- आखर रुप मिल जावै छै।
हाड़ौती वरणमाला की पढ़ाई गुरुजन अर माटसाब फैली का समै मं कक्को सिखा'र करावै छै। कक्का मं उस्यां सुर न्है दो'र ब्यैन्जनां को परयोगई मिलै छैा। पण, तो बी कक्का की पढ़ाई घणी मीठी रुचिवान अर अरसदार साबत होवै छी। आज की हिन्दी बरणमाला मं क कबतूर वाला, ख खरगोश वाला, ग गाय वाला...अर अंगरेजी अल्फाबेट मं ए फोर एपल, बी फोर बाल, सी फोर केट पढाया जावै छै। हाड़ौती कक्को ई तरै सूं बोल्यो-पढ़ायो जावै छौ-

क-कक्कोर केवलियो
ख-खक्का खुनैं चीर्यो
ग-ग्गा गोरी गाय
घ-घग्गो घटूल्यो
ङ-नन्या वालो द्वालयो
च-चड़ा चड़ी की चाचोड़ी
छ-छज्या बज्या पोटालो
ज-जज्यो जेर बावन्यू
झ-झज्जायां की घींसोड़ी
ञ-नन्यो खांडो चँदरमां
ट-ठट्टो थीर थलावणू
ड-डड्डा डावड़ गांठोड़़ी
ढ-ढड्डा डावड़ फूँछोड़ी
ण-राणा थारी तीन रींगटी
त-ततो तम्बोली तांबो
द-दद्दो द्वाल्यां दीवटको
थ-दद्दो धनक छोड्या जाय
न-आगै नन्यो भाग्यो जाय
प-पापा पाटकड़ी
फ-फप्पो फैलांत को
ब-बब्बो बाड़ी बैंगण्या
भ-भब्बो मूंछ कटार को
म-मम्मा मात आगलो
य-आयो जाटा पेट को
र-रर्से राव राखोली
ल-लल्लो लाव स्वाल्यो
(लल्ला लाव तला की लौ)
व-वाटलो की वींदो की
ष-षस्यो नंगोटो
स-सस्यो फलारो
ह-हा हा हींडोली
-कड्या पटको मोरड़ी
-च्यार बिंदी चोरड़ी

लेखणकोमकसद
इस्कूली पढ़ाई-लिखाई तो सब करै छै। नौकरी, धन्धा-रूजगार काण आजरूरी भी छै। पण इस्कूली पढ़ाई कै बारै भी लिखाई-पढ़ाई करबा को मतलब घमा लोगदणी न्है समझ पावै। हॉ, वै वकील-मुंशी, कानूको-पटावरी, सेठ-मनीम की लखाई-पढ़ाई नै जरुर चोखीतरा समझै छै। पण, म्हारी नांई का रुजगार सुदा अधेड़-मनख, नै दन रात अठफैर लिखाई-पढ़ाई में डूब्यो देख'र घणा लोग पूछ बैठै छै-अब कांई लोठा अफसर-हलकार बणबा की तैयार कर रय्‌ा छो क...? या बात सुण'र म्हूँ हॉस जाऊँ छूँ। समझदार तो म्हारी लखाई-पढाई का बार मं जाणै छै। पण, अणपढ़ या कमपढ़ लोग पूछ बैठै छै। म्हूं कैह द्यु छूँ क भाई साब ! जस्या मोरड़ो नाच्या बना, हिरण कुदक्यां बना अर वानरराज फुदक्यां बना न्ह रह सक उस्यां ही पढ्यां-लिख्यां बना म्हनै भी जग न पड़ै। म्हारी बात सुणर भाइ साब मू़डो मरोड़'र कैहता-असी माथापच्ची भी कांई काम की जी मं कोई तंत'न्ह होवै। बना मकदस दी पढ़ाई-लिखाई समै अर सरीर दोन्यूं नै खराब करै छै...।

'पढ़ाई-लिखाई' कदी बेकार न्ह जावै-आ म्हारी ठोस मान्यता री छै। नोकरी अर धन कमाबो ई पढ़ाई लिखाी को मकसद कोईनै। या तो मिनख का आखा जीवन नै सुधारै छै हरदा में ज्ञान को उजालो भरै छै। जंदग्यानी मं आबाली कतनी ई अड़चनां-मुसीबतां सूं बचाबा का उपाय भी सिक्सा यानी पढ़ाई-लिखाी ही बतावै छै। ई लेखै कोई भी मनख नै पढ़ाई लिखाई सूं जुड्यो रैहबो घणो जरूरी छै।

पढ़ाई क' लेरां (संग) लिखाई भी होवे तो कहबो ई काई ? लिखाई यानी क'लेखण। कांई बना मकसद का कोई लेखण हो सकै छै ? औ सवाल घणो जबरो छै। काम कस्यो बी होवै, उण रो मकसद तो जरुर होवै छै। सिरजण को खास मकसद-मिनखपणा, नै बणाया राखबो छै। पण नाला-नाला रचनाकार लेखण का नाला-नाला मकसद बतावे छै। संत तुलसीदास जी नै तो मन की शांति (स्वान्त सुखाय) लेखण को मकसद मान्यों छो. पण मन की शांति लेखण मकसद ईतरै को छो, जीं सूँ जण-जण को हित भी सधै छो। जणहित अर मनहित मं जुड़ाव मं जुड़ाव बण्यो रैहबो ई साँचा अर आचा सिरजण की पहैचाण छै।

मोटा रूप मं लेखण दो तरै को होवै छै। एक वू जे जगत का किरिया कलाप, बार-थ्वार, सुख-दुख, आछी-बरी बातां सूँ आकुल-वाकुल मन में उठती-खदबदाती वेदना-संबेदना अभिव्यैक्त होबा ताई लैखण नै बाध्यै कर दै छै. जदकि दूजी तरै का लेखण म्‌ं लेखक बणाय ाजावलै छै सरकारी बजट को फाइदो उठाबा तांई, पुरस्कार हासल कर लेबा तांई, अकादम्यांअर दूजी संस्थावां कोप्रभार सम्हालबा खातर, जूनी-पुराणी परमपरा को उत्तराधिकारी बणाबा तांई ये पैली तरै का लेकण में आगै बधता लेखक नै प्रभावहीण बणाबा तांई ये दूजी तरै का लेखक पैदा कर्या जावै छै. कूटनीति मं परांगत लोठा-मोठा लोग अपणा सगा-समधी, अपणी ज्यात बिरादरी, अपणी जी हजूरी मं लाग्या मिलबाला नै तुरतातुरत जोरदार लेखक बणा दै छै. वै कद सूँ लिखबा लाग्या अर वांनै कतनो कांई लिख्यो...? बात नै कुण पूछै ? हाँ, रात्यूँरात लोठो-मोटो पुरस्कार, पदाधिकार अर मान सम्मान वांनै लोठा-मोटा लेखक होबा को प्रमाण बण जावै छै। अब थां सोचो ! बरसां तांई दनरता एक कर बना कोई लोभ-लालच, बना मान-सम्मान की चावन्या कै लोक चिन्तन में डूब'र लेखण करबालो लेखक कस्याँ सामनै आ सकै छै।

म्हारा बच्यार सूँ लेखक की सई परख तद होवै छे जद लोक सामै ही कोनै आवै। सामनैं आमो चाइजे ऊंको लखण जे भीतर का रचनाकार की पैहचण करा सकै छै। जाँच कराबाल जद लेखण कै बजाई लेखक नै जाणै छे, तो वाँकी जाँच-परख बी निस्पक्स न्ह रै जावै। लेखख कासम्न्बध, ज्यात, बिरादरी, डीलडौल, रंगरुप, बोलचाल, रैणसैण सब जाण्या पाछै लेखण का मू्‌ल्यांकन मं पकसपात होबा कीपूरी-पूरी असंकाका होजावै छै। ई सूँ भीतर को रचनाकार भीतर ही दब्यो रै जावै छै। भीतर का रचनाकार की पैहचाण करबाला बिरला ईपारखी होवै छै जे अपणा भाई भतीजा, भाईला, ज्यातबन्धु, अर हाँजीमारा, करबाला चातरुग लोगां का मोहजाल सूँ ऊपर उठर देखबा की सक्ती राखै छै।

कैहबा को मतलब यो छै क लेखक बणाबो कोी बुरी बात तो कोईनै, पण आपणै आप मन सूँ बण्यां लेखक का लेखण ने अणदेख्‌ो करबो कतई आछी बात कोईनै। अपणा थिरप्या अर कुदरत का सिरज्यालेखकाँ मं कुण बढ़िया अर कुण खराब छै ? आ म्हू कैह न्ह सकूँ। हाँ, यो कैहबो ज्यादा बढ़िया छै क लेखण करम मं लगाय्‌ा सबी लेखक सबद सेवक छै। काचा-पाका, नुवा-पुराणा को आँतरो हो सकै छै।
लेखण को मकसद सबकी नजर मं नालो नाहो हो सकै छै।


जस्यां-
1. शौक प्रसंशा खातर
2. मनोरंजन अर टाइमपास
3. अपणी महत्ता अर प्रभाव खातर
4. नाम कमाबा खातर
5. पुरस्कार पाबा तांई
6. शासन-राजनीति मं घुसबा तांई
7. रायल्टी, धन पाबा तांई
8. भाषा साहित्य कीसेवा भावना सूँ
9. संस्क्रति का परचार परसार लेखे
10. लोक चेतना, देस प्रेम जबागा तांई
11. नैतिकात अर मानवता खातर
12. शांति अर क्रांति क तांई
13. समाज निरमाण क वास्तै
14. जनकलयाण तांई अनुभव अरविचारां की अभिवैक्ति
15. आत्मिक अर अध्यात्मिक चिंतन अर मन की शांति

ये सगला लेखण का मकसद हो सकै छै। पण याँ मं सरावणजोग लेकण उद्देश्य कस्या छै, यो जाणबो बोत जरूरी छै। कोरी मौज शौक, प्रशंसा, मनोरंजन अर टाइमपास का मकसद सूँ लेखण करबालो मनख आछ्यो लेखक कस्याँकह्योजो सकै छै ? धन, पुरस्कार, सम्मान पाबो आज का समै में बुरी बात कोईनै पण ई बात नै ई उद्देश्य बणा लेखण करबो बोत बड़िया बात बी कोइनै। हाँ, राजनीति में घुसबा को या अपणो काम काढ़बा कै लेखै इ लेखण में लागबो बेतुकी बात छै।...सबसूँ आछी बात या छे क जनकल्याण अर लोक चेतना जगाबा को मकसद बणा'र लेखण कर्यो जावै। साँचो लेखक ऊ ही छै। संस्कृति, देश प्रेम क' लेराँ मानव मूल्यां को परचार परसार बी सांचा लेखण मं जरूर मिलै छै। सांचो अर आछ्यो लेखण जण-जण को कल्याण बी करै छै तो लेखक नै शांति अर खुसी बी दै छै।

साहित्यमंसमसामइकताअरकालजइता
साहित्यै सिजरण एक ओर मन का भावों नै शब्दा मं व्यैक्त करबा को नांव छै तो दूसरी और वैवहारिक अभिव्यैक्ति (आचरण) नै पकड़'र मन की गैराई में छुप्या मनखपणा (मानवीय मूल्र रूपी रतन) खोजबा को दूसरो नांव छै। या बात नाली छै के रतन खोजबा का चक्कर मं कतनाई खोजी (रचनाकार) कादा-कीच नै ई रतम मान बैठे छै। कोई कोई नै रतन की बज्याई जैहर बी हाथ लाग जावै तो कोईअचरज की बात कोईनै। या बी तो होती आई छै।...पण खरो सिरजण तो वू छै जे कादा कीच मैजैहर नै अर रतना नै उजाला मं ला'र सबकै सामनै पारखी-लोगां सूँ जाँच करा कै। ईतरै सूँ साहित्यै सिरजण मनख पणा नै बचार जिन्दो राखबा को मैहत्त्वपूर्ण काम छै। ई मं कोई संशै करबा की जुरत कोइनै।

एक जुग या कालखण्ज मं लोगां की वैवहारिक अभिव्यक्ति वूँ समै की समसाइकता कही जा सकै छै। उस्या समसाइकता को जुड़ाव वर्तमान सूँ रै छै।वर्तमान का आचार-विचार, रैण-सैण, चाल-चलण इत्याद को चित्रणसमसाइकता ई छै। ईसूँ ई एक जुग बिसेस या कालखण्ड की पैछाण बणै छै। जदपि समसाइकता मं समै मुजब बदलाव आतो रै छे। तदपि ई को मैहत्त्व कम न्है कर्यो जा सकै। या बी जरूरी कोईने के सामइक लेखण थोड़ा द नां पाछै दपणाबा जोग हो जातो होवै। सामयिक लेखणतो एक असी बेलड़ी छै, जीं मं सूँ नूई नूँई डॉहलाँ फूटती जावै छै। सामयिकता जद नूई बेलड़ी मं बदल जावै तो वूँ को मूल-तणो कालजयी बणाया राखबा के तांी बी पाणी को छड़काव घणो जरूरी छै, जी कों सम्बन्ध वर्मतान सूँ छै। वर्मतान मं पाणी की कमी हो ज्यागी तो बेलड़ी जड़मूल सूँ बी सूख सकै छै।

म्हारा विचार सूँ समसामयिकता दोतरै की होवै छै। एक अल्पजीवी अर दूजी दीर्धजीवी। अल्पजीवी सामयिकता एक कलाखण्ड का चणी सा टैम नै दरसा'र सदा के ताँई बुझ जावै छै, पण दीर्धजीवी एक कालखण्ड नै पूरी तरै सूँ प्रगट करै छै। आपणजुग की कड्याँ कड्याँ नै जोड़'र एक लम्बो चौड़ो नक्शो तैयार कर दे छै। या बात बी कालजयता नै पैदा करबा को एक कारण बणै छै पण, जरूरी या छै कि सारी ई कड्याँ ई मं समाई होवै। कोरी एक छोटी सी कड़ी नै अपणा जुग को नक्शो बता देबो कालजइता नै जनम न्ह दै सकै।


कालजयी सिरजण आसान काम कोईनै। समै का झझोड़ा मनख नै अपणी अपण आडी खाँचबा की कोसिसकरै छै। कदी आग बरसातो तांवड़ो तो कदी नीमड़ी की छाँव, कदी सेल बहाल का रूहलका तो कदी बलबलती झक्कर (लू), कदी आड़ी वूँली भटभोड़ गेल तो कदी डामर सी सड़क, कदी काती आगण की धूजाबाली ठण्ड तो कदी जेठ की दफरी, कदी मावस की घोर अंध्यारी रात तो पूनम की धोलीफट्ट चांदणी...ओर बी न जाणै कतना कुदरत का रंग-ढंग मनख नै अपणा-अपण रंग मं डूब जाबा के ताँई बाध्य कर दै छै। पण कालजयी वू होवै छै जे याँ सूँ बच खडै अर याँ पै आपणो नियन्त्रण कर लै। बच खडबा को मतलब यो कोईनै के मनख पै या चीजां को प्रभाव ई न्है पड़ै...। आखर, लेखक भी ई संसार को जीवधारी सरीर छै। ई लेख ैसंसार का रंग वूँ कै बी लागैगा जरूर। पण वू दूजा जीवधारयां सूं ऊपर उठ्यो जीव तो छै ई। ईलेखै वू एक कालयजी बी हो सकै छै। अपणा सिरजण नै कालजयी बणाबा के तांी या बोत जरूरी बात छै के वू (रचनाकार) समै का झझोंड़ान सूं बूझकर बी, कुदरता का रंगा सूँ भड़'र बी आपणै आप नै डूबबा न्है दै। सावचेत हो'र सिरजण करबा हालरो रचनाकार ई कालजयी हो सकै छै।

एक कालखण्ड की हद नै उलाँग'र आबाह्वा जुग मं बी प्रासंगिक अर उपयोगी बण्यो रैबा की खितम वूँ मं होणी चाइजै। ईं को मतलब यो कोइनै के आबालो समै अगर भ्रष्ट, अर लूटखसोट को आ जावै तो साहित्यै सिरजण बी वूँ जुग की पूरी बातां को समरथन करै या फेर वां के तांई उपोयगी बणै। कालइता को एक ठोस अरथ छै मानवीय मूल्यां सूं हर हालत मं जुड़'र चालबो। कस्या बी गुट अर कस्या बी खेमा को मनख होवै रचनाकार को यो करत्तबै बणै छे कि वू जुग बिसेस की रीति-नीति नै देखतां-परखतां अपणा समै का आचार-विचार सूँ तालमेल बिठा'र मानवीय मूल्यां की हिफाजत करै। संवेदनशीलता नै बचा'र वूँ की सुरक्सा के लेखे कोई सलीसट्ट (साफ-सुथरी) गेल सुझावै। यो काम सामइक अर कालजयीदोनूं तरै की रचनावां सूं संभव छै। कालयजी रचनावां के लेखे तो अनिवार्य भी छै।


कालजइता को जनम सामइकता की कोश सूँ ई होवै छै। ईं तरै कोई रचना लिखती टैम नै रचनाकार का मन या बता पै'ली सूँ तै न्है होवै के वू कोई कालयजी रनचा माँडर्यो छै। अगर कोई पै'ली सूँ या बता तै कर रचना मांडै तो बी जरूरी कोईनै कि वा रचना कालयजी बण ई जावै। कालजइता को निर्धारण वर्मतान मं न्ह हो'र आबाला जुग मं ई हो पावै छै। बाल्मीकि, कालीदास, तुलसीदास, सूर, मीरा बिहारी, रविन्द्र नाथ टैगोर, प्रेमचन्द, निराला, महादेव, जयशंकर प्रसाद बिदेसी रचनाकारां मं चेखब गोर्की, बर्टोल्ड ब्रेख्त, रास्किन, पुस्किन..आद आद नै मानव समाज के तांई कालयजी रचनावां दी। ये बी अपणा समै का जीवता-जागता खींचता र्या छा। कोरा चितराम ई न्हा दुनिया का वैवहार अर सिद्धान्तां का द्वन्द्व नै बी चोखीतरां समझ रया छा।

कोरी कल्पना सूँ कालयजी रचना की उम्मीद नन्ह करी जा सकै। रीती कल्पना न्ह तो सामयकि होवे अर न्है वा कालयजी बण पावै। मतलब यो बी कोईनै के रचनाकार नै कल्पना करणी ईन्ह चाईजै। कल्पना एक सपनो छै। अर कदी कदी सपनो सांचो हो जावै छै। पणवूँ को जुड़ाव हकीकत सूँ हो बो जरूरी छै। कल्पना आपणा समै री सच्चाइयाँ सूँ जूड़ी होणी चाइजै। असल मं सिरजण भाव अर ूत को अनूठो ताल मेल छै। ई तालमेल सूँ ई पैदा हो जावै छै विचार. जे पतवार बण'र नाव नै कनारै लगावै छै।


रचना कलयजी होवै, चावै समसामइक दोन्यूं ई अपणो अपणो महत्त्व राखै छै। हाँ अपणा समै की उलझणाँ नै समसामइक रनचावाँ खुल'र सुलजा सकै छै। जदकि कालजयी रचनावां हर जुग की मुस्किलाँ पै प्रकास डालै छै। इ लेखे वांनै बी सामयिक लेखण सूँ ई चोखीतरां समझ सकै छै।

साहित्यअरराजनीती
साहित्यै अर राजनीति पै चरचा करबा सूँ पेली साहित्यै को मतलब चोखीतरां समझ लेबो घणो जरूरी छै। क्यूँकि साधारण लोगबाग पोथी नै ई साहितै मानबा की भूल कर बैठे छै। कोरी पोथी साहित्यै न्ह हो सकै। क्यूँकै पोथ्यां तो कतनी ई तरै की होवै छै। चुटकलाबाजी, फिलमी अर सेक्सी बातां छारबा हाली कताबां नै साहित्यिक कस्यां मान ल्यां ? हिन्दी का सुरूआती दनां मंजे बी कताबां हिन्दी मं छपै छी, वू हिन्दी साहित्यै ई मान्यो जावै छो। पण,जद सैंकडूँ बिसयाँ पै अणगणित पोथ्यां छपबा लागी तो मूल साहित्य नै अपणा नालो ई सरूप तै कर्यो। गणित, भूगोल, बिग्यान, राजनीति, चिकत्सा, तकनीकी, मनोरन्जन, सेक्स, फिलम, खेतीबाड़ी, बागवानी, रसोई, गायन-बादन, निरतै, जादू मन्तर तंतर, ढाड़ाफूंकी आद आद बिसयान पै मँडी-छपी कताबां हिन्दी साहित्यै मं सूँ ई फूट-फूट'र साहित्य की मूल भावना सूँ नाली खड़गी। हाँ आध्यात्म, दरसण, धरम अर समाज ये च्यारूं चीजां पुराणा समै सूं लेर आधुनिक काल ताई साहितै की आतमा मं घुली-मली री छै। आधुनिक साहित्यै का आँगणा मं आ पसरी ! फेर बी, आधुनिक काल का साहित्यै को परमुख सुर सामाजिक ई बण्यो।


मूलरूप सूं साहित्यै 'आतम संवेदना' को दूसरो नांव छै। 'आतम संवेदना' की अभिबैक्ति भासा का माध्यैम सूँ ई होवै छै। कोई बी भासा वूँ संवेदना ने ब्यक्त करबा के तांई पद्य या गद्य को रूप दै छै। पद्य में गीत, गजल जस्या ढेरूं छंदां वाली अर बना छन्दा वाली कवितावाँ; गद्य में कहाणी, नाटक, निबन्ध, व्यंग्य, संस्मरण आद आगद विधावां को उपोयग साहितैकार करै छै। साहितै "स्वान्त सुखाय" बी होवै अर "बहुजन हिताय"बी। साहित्यै व्यस्टि सूं हो'र समस्टि के तांई लेबा की अणूठी खिमता रखाणै छै। साहित्यै को प्हैलोपैल सरूप पद्य मान्यो ग्यो छै। केवै के पद्य को जनम 'क्रोच मिथुन' की बेदना सूँ ई होयो छै।

हिन्दी साहित्यै का लोटा मोटा साहितैकार माने छे के साहितै समजा को दरपण छै। जद के म्यूं मानू छूँ के साहिते समजा की संवेदना को दरपण होवै छै। यानी के साहिते समाज के तांई कए 'टोर्च' को काम करै छै। धुंधलका मं कोहरा में एक एक साफ सुथरी पगडंड़ी मिनख नै चालबा तांई सुछावै छै। मनख के हिरदै का प्रेम, मन का मैल अर आतमा का घावा पै उजालो फेंला'र सबके समानै उघाडै छै। जीं सूं मनख सावचेत हो सकै छै। जे साहितै ई काम मं खरो न्ह उतरै, वू लेखण एक बढिया रिपोर्टिंग तो हो सकै छै; पण उम्दा साहितै न्हं कह्यो जा सके।

अब बात साहितै अर राजनीति की। कोई कैवै छै के साहितै नै राजनीति सूँ दूर ईहोणो चाइजै। साहित्य मं राजनीति अर राजीनति मं साहितै। कोई ई बात नै सई मानै छै तो कोई वूँ बात नै।

पण साँची बात तो या छे के समजा अर राजनीति एकस दूजा का पूरक छै। जद के साहिते समाजज की संवेदना को दरपण छै। राजनीति समजा सूं वा समजा की संवेदना नै बी परभावित करेै छै। ई बजे सूँ राजनीति अर साहितै को बी एक सम्न्बध बणै छै. दोन्यूं समै पै एक दूजा पै असर करै छै। साहितै राजनीति ने परभावित करै, एक चोखी बात हो सकै छै। पण, राजनीति साहिते मं करै तो या बात मंगलकारी मुसकिल सूँ हो सकै छै। क्यूँकै आज की राजनीति मं ढेरू पारट्यां छै. जद एकपारटी सत्ता मं होवै तो वा साहितै ने अपणे हथयार का रूप मं बी इस्तैमाल करबो चावै छै।

असल मं साहितैकार नै ई राजनीतिक 'बलेकमेल' सू बचणो ई चाइजे। क्यूँकि साहितै कोई परचार तन्तर तो छै ई कोइनै। बिसेस रूप सूँ शासन वाली राजनीति सूँ आरथिक फाइदो, सुरक्सा अर दबदबो कायम करबो आसान काम छै। पण, ई तरै को साहितै समाज की संवेदना सूँ कट जावै छै। ई वजै सूं साहितै 8होबा की मोटी सरत नै बी पूरी करबां मं जे खरो न्ह उतरै वू लेखण तो हो सकै छै, पण मैहताऊ साहित्य न्ह हो सकै। शासन को पकस ले'र लेखण करबालो लेखक तीन मोटी बहातां को ध्यान रखाणै छै। एक तो वू सरकारी आदेशा को इश्वर का विधाना की नांई पालण करै छै। दूजी बात जनता का दुख-दरद नै वू किसमत बता'र दूर हट जावै छै। तीसरी बात, वू अपणा फाइदा के कांण सत्ता नै खुश करबालो या फेर विरोधी राजनीति की बखिया उधेड़बा वाली रचनावां नै ई जादा मेहत्तव दे छै।

बिरोधी राजनीति पै चालबाला साहितैकार एक हद ताणी समजा की संवेदना सूं जुड्या हावै छै. वै शासन का गुण गाबा के बज्याई जनता का दुख-दरद नै बैक्त करबो आपणो फरज समछै छै। ई वास्तै बिरोधी राजनीति को साहितै एक महत्त्वपूर्ण साहितै बण जावै छै। पण, ई मं बी खोटा..जाबा की आसंका रै छै। जद बिरोधी राजनीति को साहितैकार सरकार का हरेक कदम को बिरोध करबो ई अपणो सिधांत बणा लै छै। जद वू शासन का जण हितैसी कामां नै अणदेख्या कर जावै छै। जद वू साहितै नै बिरोधी राजनीति का परचार को ी साधन मानबा लाग जावै छै।

फेर बी दोन्यूं तरै कासाहितै की तुलना करां तो सत्ताधारी साहितै की बज्याी बिरोधी राजनीति को साहितै जादा मेहत्तवपूरण कह्यो जा सकै छै। क्यूंकै यो साहितै बैक्तिगत हितां के बज्याई सामाजिक हितां सूं अर सामाजिक संवेदना सूं सीधो सीधो जुड्यो होवै छै।
साहितै पराटी बिसेस सूं जुड'र न्ह चाल सकै। क्यूकै कोई बी पारटी सामाजिक हितां की तुलणा मं पारटी हितां नै ई प्राथमिकता दै छै। जद कै साहितै सामाजिक हितां नै पैहलो इस्थान दैवे छै। हाँ, खास समै मं साहितै मं साहितै को सुर कोई बी पारटी का सुर सूं मेल खा सकै छै। ज्सांय सुराज आन्दोल की टैम नैसाहितै को परमुख उद्देसै बिदेसी शासन को बिरोध अर राष्टरीय भावना को जणजण मं बिकास, सामाजिक चेतणा को उद्भव। यो ई उद्देसे वूं टैम नै काँगरेस पारटी को बी छो. ई वास्तै साहितैकार वूं टैम अस्यां लागै छा, जाणै वे कांगेरस पारटी का सूत्तरधार होवै। कोी छाब बी सरी। पण, कैहबा को मतलब यो छै के एक खास टैम पै जद सामाजिक हितां पै कटार चाल री होवै, वूं टैम नै कोई कसी बी पारटी सामाजिक हितां का पकस मं कटार चलाबा वाला के खिलाफ बोलै तो साहितै वूं पारटी बिसेस सूं एक खास सीमा तांई जुड़'र चाल सकै छै। पण, यो जुड़ाव एक खास समै तांई नभ सकै छै। जस्यां 'सम्पूरण साक्सरता' की बात एक परान्त मं जो 'भाजपा' सम्हाल री होवै, दूजा परान्त मंं कमीनस्ट पारटी अर तीजां मं कांगरेस सम्हालै तो साहितैकार की या नीति न्ह हो सकै के वूी एक परान्त मं तो 'साक्सरता' को समर्थन करै अर ौरां नै फूअड़ साबित करबा को परयास करै। साहित्य की नजर सूं तो सक्सरता एक शुबकारी बात छै, चोखी बात छै. ई नै जे बी चलावैगो साहितैकार वूं का पकस मं बोलेगो ई। या बात नाली छै के कोई 'योजना' या 'नारा' के पाछै कोई राजनीति घपलाबाजी नजर आवै तो साहितै वूं की पोल बी बेझिझक खोल सकै छै। राजनेतावां नै बीसाहितै सूं यो दुराग्रह न्ह राखण ीचाइजै के वू पारटी बिसेस की रीत्यां-नीत्यां को ई समरथन करतो रैवै। साहितैकारां पै राजनीति को दबाव या परलोभण चोखी बात कोइनै। साहितै सिरजण तो एक प्रकार की 'साधना' अर 'तपस्या' छै। एक 'सतसंग' छै जे लगातार रचणाकार के भीतर ई भीतर चालतो रैवै छै। ई की हिफाजत अर बिकास हरेक राजनेतावां को खास करत्तवै होणो चाइजै।

सुणबाकीसगती
बालक पैदा होतांई सुणबोसरू कर दै छै। घणा सारा सबद, घणी सारी बातां लम्बा समै तांई सुण्या पाछै ई वू बोलबो सरू करै छै यानी के बोलबा की क्रिया को इस्तान सुणबा की क्रिय के पाछै छै। प्हैलो इस्थान तो सुणबा कोई छै। सुणबो सांच्याई साहस को काम छै। सुणबो एक तरै की सक्ति छै। सुणबा सूं समझ की पैछाण करावै छै।

सुणबा को अतरो महताऊं होताँ-सताँ बी आदमी ज्यूँ ज्यूं बड़ो होतो जावै छै, त्यूँ त्यऊं ईसुणबा के बज्याई बोलबा नै परथमिकता देतो जावै छै। उस्यां बोलबो बी जरूरी छै, पण बोलबो जद ई असरदार हो सकै छै, जद बोलबाला नै वूं बात सूँ सम्नब्नधित घणी बातां प्हैली सुणली होवै। बना जानाकारी हासल कर्यां अनरगत बातां बोलता रैबा सूँ मनख को थोथापण परगट होवै छै। बेतुका झगड़ा-झंझट बी पैदा हो जावै छै। गौर सूं देखी जावै तो आज का समै मं जरा जरा सी बात के लेखै मारपीट अर हत्या बी सुणबा की कमी की बजै सूं ई जदादतार होवै छै। सुणबो अर बरदास्त करबो कमजरो दिलां का लोगां के बश की बात कोइनै। ई के लेख गाढ अर ताकत होबो जरूरी छै। सुणबो अर बरदास्त करबो सास्त्रीय भाशा में सहिष्णुता या सैहन सगती कहलावै छै।

आपण देश का आध्यत्मिक ग्रंथाँ मं सहिष्णुता पै घणो परकास डाल्यो ग्यो छै। जीवो अर जीबाद्यो आपणी संस्कृति को मूल मन्तर छै। महावीर स्वामी, गौतम बुद्ध अर महात्मा गाँधी की अहिंसा मनख का हिरदै मं सैहनशक्ति पैदा होयां सूं ई फलीभूत हो पावै छै। सुणबा की शक्ति, सैहन करबा की शक्ति यानी सइस्णुता के बना अहिंसा की कलपना बी न्ह करी जा सकै। आजकाल का चालबाज थोड़ा पढ्‌या लोग महापुरसां की ्‌णमोल सूक्त्यां को गलत अरथ काढ'र खुल्लम खुल्ला दुरपयोग करबा लागग्या। जी कै भीतर सैहन साक्ति बिलकुल बी कोइन ैकोई की एक बात न्ह सुण'र अपणी ई ्‌पणी क्यूं सुणा ? ई लेखै आपण क्यूं सुणा ? आपण मं तो ताक छै सुणाबा की ई वास्तै लोगदण्या के तांई बलबलती, अंगीरा सी टकती गाल्याँसुणावाँ छां। यो छे महापुरसां की सुक्त्याँ को गलत इस्तैमाल। वाँ नै कांई क्ही अर थां कांई कर र्या छो ? ई बात पै गौर करबा की फुरसत कुणनै ? गाँधी जी नै तो बुरो न्ह सुणबा की बात क्ही छी। आछी अर सांची बातां सुणबा सूं तोवै कदी नट्या कोइनै छा। और ाके तांई बरी-बरी, सूगली-सूगली बातां सुणाबा की बात न तो गाँधी जी नै क्ही न कोई दूसरा महापुरष नै।

जे मनख दूसरी की एक न्ह सुणै, कोई की एक न्ह गदानै, वूं मै धीरां-धीरां रांगसपणो पनपबा लाग जावै छै। रावण अर कंस बी तो कोई की न्ह सुणै छा। हमेसा सुणावै ई सुणावै छा। रावण विभीषण की सुण लेतो, मंदोदरी की सुण लेतो तो साइद लंका को बिनास बच जातो। खून-खराबो न्ह होतो। सुणबा को सुभाव तो राम को छो, जे परसराम का धधकता क्रोध के सामनै बी शीतल बण्या र्या। सारी कड़ी-कसायली बातां पै पी जावै छा छानमून नीलकंठ कीनांई। पराचीन काल मं आपणादेसका रिसी-मुनी मौन धरण को अभ्यास करै छा। ई के पाछै ई भावना छी के जादा बोलबा सूं बचबा के तांई मौन धारण करै छै वै। कम बोलबा सूं आंतरिक सक्ति विकसित हो जावै छै। जद के जादा सुणबा सूं ज्ञान को परिस्कार हो तो रै छै। हरके मनख एक निर्धारित समै तांई नैमितरूप सूं सुणबा को अभ्यास करै तो याचीज वूँ का सुभाव मं थोड़ी-बोत जरुर आ जावै छै।
जस्या लिखबा के प्हैली पढ़बो जरूरी छै। बना पढ्यां तो कांई बी न्ह मांड्यो जा सकै। उस्यां ई बोलबां सूं प्हैली सुण लेबो जरूरी छै। बना सुण्या बोलबालो थोथो चणो होवै छै। राजस्थानी में एक कहावथ छै के थोथो चणो बाजै घणओ या बात संस्कृत का बिद्वानां नै यूं कही छै अर्धो घटो घोषमुपयति नूनम् अर वाचालो लभते नाशम् तो बी आजकल का चालबाज बड़बोलो कैह छै जे जाणै वू बोलै छै। न्ह जाणबोला अज्ञानी कांई खाक बोलेगो..ई तरै सूं मन समझाबा हाली बातां करकै बड़बोला लोग भलाई सूं बाप का फूल बी न्ह जाणता होवै पण रीती बड़बड़ाट के पाण ज्ञानी होबा को ढोंग करता फरै छै।
म्हारी बात को सार ोय कोइनै के मनख ने बोलमई ई न् ह चाइजे। जरूरली बोलणी चाइजै, पण सोच समझ'र। जे बात आपण कैबा जार्या छां, वूँ बात नै आपणै आसपास का लोगबाग कतनी जाणै छै ? ई बात की पड़ताल बोलबा सूँ प्हैली कर लेबो पुरी बात कोइनै। अर या पड़ताल सब की बातांसुण्या पाछै ई पुरी हो सकै छै।

आजकाल का मोट्यार सुणबा के बज्याई सुणाबा के तांई जादा उतावला होता दीखै छै। रीतो सुणाबो ई सुणाबो आपणी संस्कृति को अगं कोइनै। बोत कुछ सुण्या पाछै खरी खरी सुणाबो आपणी जूनी परम्परा की पैछाण छै. सिरी क्रिसन नै सिसपाल का मूँडा सूँ निन्यानमें गाल्या सुणी, पाछै सोवीं गाली ओर काढ़ी तो वूं को माथो काट न्हाक्यो। जब के आजकल तो एक गाली मं चक्कू भूंक दै छै। एक ई गाली मं पड़ौसी-पड़ौसी लोई-ल्वाला हो जावै छै। एक ई कड़बा लबज सूँ सासू-बू बिफर जावै छै। बाप-बेटा माथा-फोड़ी कर बैठे छै। ओर तो ओर एक विद्यार्थी की गुरुजी की कठोर बात नै सैनह न्ह कर पावै। यां सारी बातां सूँ पतो चालै छै के आज का मनख्यां मं सैहनसक्ति, सुणबा की ताकत लुपत होती जा री छै। कोरा सररी की ताकत नै ई सब कुछ मान लेबो पर्याप्त कोइै। मनख मं सैहन करबा की सक्ति होबो बी बोत जरूरी छै। ई का अभाव मं लोगदणी जरा जरा सी बात पै ई आतमहत्या करबा के तांई बिवस होबा लागै छै। वूं टैम नै सररी की ताकत दो टका की बी न्ह रै जावै।
असी बात बी कोइनै के आपणा देस मं सुणबाला, सैहन करबाला कोई बच्या ई कोइनै। हाल तो घमा लोग छै, ज्यां मं सइस्णु को सद्गुण कूट-कूट'र भर्यो छै। दुख की बात तो या छै के ्‌स्या हीरा जस्या मनख्या की कोई कदर न्ह री। उल्टा वां की मजाक उड़ावै छै। चालबाज लोज वानै भोला ढाला, दुनियादारी सू अणभिज्ञ मान कै टुरका देबो चावै छै। वां की सैनह सगती अर सुणबा की ताकत नै एक कमजोरी समझ बैठै छै. अर कमजोर के ऊपर जुलम-अत्याचर करबो आज का चालबाज-उद्दण्डी लोग आपणो हक समझै छै। ई कुनीति नै चोखीतरा पैछाण'र सइस्णुता को धणी'बी आखरकार दुस्टता सूं मुकाबलो करबा के तांई बायाँ चढातो नजर आबा लागै छै।

आरम्भिक राजस्थानी गद्य साहित्य
राजस्थानी भाषा को गद्य साहित्य आजसूं कोई सात सौ-आठ सौ बरसां पैली रच्यो-बिकस्यो साहित्यम ान्यो जावै छै। संस्कृत, प्राकृत अर पाली भाषा मं पलतो-पोसतो गद्य अपभ्रंश मं आ'र धुँधलाबा लागगयो छो। अपभ्रंश मं नाऊ मात्र को गद्य दिखबां मं आ सकै छै।
अपभ्रंश क पाछै लो भासावां का विकास काल मं गद्य साहित्य फेरूं फलीभूत होबा लाग्यो। बात, क्यात, हाल, बंशावली, टोटका, दवाई-दारू, जंतर मंतर आद आद रूप मं लोग भाषायी गद्य को प्रचलन सरू होयो. ओ समै सम्बत 1300-1350 क' लंगै-ढंगै को छो।

राजस्थानी गद्य काल खण्डः-
राजस्थानी गद्य का विाकस नै समझबा सारू ई राकालखम्डाँ ने जाणबो जरूरी छै. डा. शिवस्वरूप शर्मा नै अपणा शोध प्रबन्ध मं राजस्थानी गद्य तीन काल खण्डां मं बाँट्यो छै-

(एक) प्राचीन (जुनी) काल -सं. 1300 सूं 1600
यो बी दो भागां मं बाँट द्यो-

(अ) प्रयास काल-सं. 1300 सूं 1400
(ब) विकास काल-सं. 1600 सूं 1600
(दो) बिचालौ (मध्य) काल-सं.1600 सूं 1950
(तीन) नूवौ काल (आधुनिक काल)सं. 1950 सूं आज तांई
सम्वत 1300 सूं 1600 तांई को प्राचीलन काल का नांव सूं जाण्यो जाबा हालो समै राजस्थानी गद्य को आरम्भिक काल ी छो. ई काल मं जैन मुन्यां की रचनावां को बिसेस योगदान रय्‌ो छ राजस्थान गद्य साहित्य नै बिकसावां मं. सम्बवत 1330 मं रची आराधना, नवकार व्याख्यान (1358) अतिचार (1369) धनपाल कथा (1400) आद राजस्थान गद्य का प्रसाय काल की महताऊ रचनावां मानी गी छै।

सम्वत 1400 सूं 1500 क'बीच को समै राजस्थानी गद्य का विकास को आरम्भिक समै छो. ई समै मं बी केई महताऊ पोथ्या अर रचनावां उभर'र सामै आई। जस्यां तरुणाप्रभसूरि की षड़ावश्यक बालावबोध, माणिक चंद सूरि की वाग्विलास (पृथ्विचंद चरित), चारण शिपदास की अचलदास खीचीं बचिनिका जिनवर्धन सूरि की गुर्वावलि समुद्र सुरि शातंसिागर सुरि की जैन वचनिकावां प्रमुख रचनावां मानी गी छै। और ओर बी गद्य लेखक ई जुगमं होया ज्यांम सोम सुन्दर सूरि, मेरु सुंदर खतरत गच्छ अर पार्श्वचंद सूरि को नांव उल्लेखण जोग छै। ओर बी केई लोकभाशा का विद्वान ई काल मे ंहोया ज्‌ायंको सई सई नावं अर पतो- ठिकाणो हाल तांी बी न्ह लगा सक्यो छै।

आरम्भिक राजस्थानी गद्य की खास बिशेसतावां-

1. धार्मिक गद्य साहित्य-
राजस्थानी को धार्मिक गद्य साह्तिय आख्यान अर अनुवाद का रूप मं मिलै छै। संस्कृत, प्राकृत, बालि भासां मं रच्या धार्मिक साहित्य की कथा-कहाण्यां, आ यान को लोक भासां मं रूपान्तरण हुयौ। याँ मं रामायण, महाभारत, भागवत, वृहतकथा आद को नांव गिणयोजा सकै छै।
2. राज दरबारी गद्य
राजा-महाराज अपणा समै की खाश-खास घटनावां नै ख्यात का रूप मं लिखावै छा। जस्यां नैणसी री ख्यात दलायल दास री ख्यात, बांकीदास की ख्यात आद आद। बात, फड़, वंशावली, हाल ज्साय केई रूपां मं आरम्भिक राजस्थानी को गद्य साहित् ई समै मं रच्यो ग्यो छै।
3. जोशीलो-गर्विलो गद्य-
वूं समै मं राजा महाराज क बीच मैं घमासाण युद्ध चालै छा। तलवार्या खणकाती फौजा कट मरै छी। वूँ को आँख्याँ देख्णो वर्णन-चारण भाट करै छा। जीन सुण र मरदा की मूँछया तण जावै अर मुरदा का बी रूँगटा ऊबा हो जावै छा। उस्याँ वीर रस को जोशीलो वर्णन गद्य की बज्याई पद्य मूं जादा मिलै दै। तो बी ई तरै को रचाव राजस्थानी का आरम्भिक गद्य मं जगै जगै देख्यो जा सकै चै।
4. रसीलो-रंगीलो गद्य-
गोरी, राजकन्या अर राणी का रूप-सरूप का वर्णन, बाग बगीची, कुआ-बावड़ी अर सरद बरसात को वर्णन, हांसी-मसखरी, ब्यावलो, गाल आद आद तरै की बातां राजस्थानी गद्य नै रसीलो अर रंगीलो साबित कर दै ैच। सभा, श्रृंगार, कुतुहल, मुत्कलानुप्रसा, राजान राउत को बात बणाव जसी पोथ्यां, वचनिका अर दवावैत आरम्भिक राजस्थानी गद्य की स्यानदार बानगी छै।
5. ज्ञान विज्ञान सूं भर्यो गद्य-
ई तरै राजस्थानी गद्या जादातर अनुवाद या टीका का रूप मं मिलै छै। आयुर्वैद, ज्योतिष, तंत्र मंत्र, सुगन अर सुपना का हाल जस्या बिषया पै राजस्थानी गद्य की रचनावां वूं आरम्भिक समै मं बी मिलै छै।
6. तुकान्त गद्य-
यूँ तो आजकल का लोग तुकांत रचना नै काव्य मानै छै। पण सांची आ छै क सगलो संस्कृत काव्य छन्द बद्ध हो'र बी अतुकांत छै। जदकि राजस्थानी को आरम्भिग गद्य तुकान्त रूप मं जादातर मिलै छै। ई कारम छै क छन्द मं तुक मिलाबा को पैलो प्रयास अपभ्रंश का दूहा मं होयो। जी को सीदो सीधो असर वूँ समै बिकसित होलीत लोभासा (राजस्थानी) मं बी आयो। संम्बवत 1478 मं रची माणिक्यचन्द्र सूरि की वग्विलास (पृथ्विचंद्र चरित) राजस्थानी गद्य रनचा छै। तुकांत गद्य को ेक उदाहरण-प्रथम ही अयोध्या नगर जिसका बणाव। बारे जोजन तो चौड़े सोलै जोजन के फिराव। चौतरफ कै फैलाव, चौसठ जोजन के फिराव...।
7 सीधो-सपाट गद्य-
आरम्भिक राजस्थानी गदय बिना लाग-लपेट को सीधो-सपाट गद्य है। ई तरै गद्य साधारण बोलचाल मं काम ल्यो जावै छो।
8 अलंकारिक गद्य-
आरम्भिक राजस्थआनी गदय जद खास-औसर पै रच्यो जावै छो तो वूँ मं अलंकारिता बी खूब आ जावै छी। वचनिका, वारता, जुतचाल ई तरै का उदाहरण छै। अनुप्राय, उपमा, रूपक क अलावा वैणसगाई अलंकार को प्रयोग घणो घमओ दीखबां मं आवै छ-
-निरखई अचल निडार (साधारण वैणसगाई)
-मनि मान्यउ मोकल सधू (असाधारण वैणसगाई)

हाड़ौती अंचल का आधुनिक राजस्थानी गद्य लेखक अर साहित्य
हाड़ौती अंचल मं राजस्थानी गद्य लेखण की सरूआत गागरुण का शिवदास गाडण रचित अचलदास खींची री वचनिका (सन् 1434-1444) मानी जावै छै। उस्यां वचनिका की भाषा आज की हाड़ौती या राजस्थानी सूं बलकुल नराली छी। तो बी ऊं बखत मांडी वचनिका को गद्य. राजस्थानी अर हाड़ौती सूं मेल खावै छै। ई पाछै सन् 1872-1925 क बीच मं वंश भास्तकर गरन्थ मांड्यो। यो गद्य अर पद्य को मिल्यो जुल्यो रूप छो। सन् 1910 सूं 1975 के बीच आंध्रप्रदेश सूं डीडवाणा आया सिरी चन्द्र भरतिया ने कनक सुन्दर उपन्यास लिख्यो. यो राजस्थानी को पैलो उपन्यास मान्यो जावै छै। जदकि हाड़ौती अंचल की राजस्थानी को पैलो लघु उपन्यास प्रेम जी प्रेम को सेली छांव खजूर की मानै छै। सिरी जमना प्रसाद ठाड़ा राही हाड़ौती अंचल का पैली एकांकीकार छै। शेरवान्या, स्कूटर ल्यूँगो, पराघत राही जी की खास एकांक्यां छै। डा. बद्री प्रसाद पंचोली को पाणी फैली पाल एक सम्पूरण नाटक छै। शचीन्द्र उपाध्या की कहाणी काची गडार हाड़ौती की पैली ख्याणी मानै छै। यूँ प्रेम जी प्रेम को कहाणी संग्रे-रामचंद्रा की रामकथा बी ऊ टैम को ख्यातनाम संग्रे छै। सिरी गिरधारीलाल की कहाणी काकी चतरी सिरी नाथूलाल शर्मा निडर की उघाड़ो दल्यालो सिरी ब्र. मधुर की एक छो सोनी कहाण्या वूँ जमाना मं चरचित होई।
हाड़ौती बोली अर साहित्य पै शौध करबाला डा. कन्हैयालाल शर्मा हाड़ौती का भाषाविद, आलोचक, पथप्रेणता का रूप मं समानै आया। आपनें सम्वत 2049 वि. मं राजस्थानी भाषा साहित्य अकादमी की ख्यातनाम पोथी हाडौती अंचल को राजस्थानी गद्य को पूरी हुँस्यारी अर ईमानदारी सूं सम्पादन कर्यो। आपको कैहबो छै क या पोथी स्वं. श्री गोरी शंकर जी कमलशे की प्रेरणा सूँ अकादमी नै प्रकासित करी छै। तेजाजी, परथी राजा का कड़ा लोकगाथावां जसी पोथ्यां को सम्पादन बी डा. कन्हैयालाल जी शर्मा नै कर्यो छै। आलोचना, समीक्सा अर शोधपरक लेख डा. शांती भारद्वाज राकेश नै लिख्या, जे पत्र-पत्रिकावां मं मिलै छै। सिरी दुर्गा दानसिहं नै गीतां के साथ गद्य बी मांड्या छै। सिरी गोरी शंकर जी कमलेश का ललित निबंध बी सरावण लोग छै। हाड़ौती मं आलोचना का बीज सिरी बालक्रश्न जी थोलंबिय की भैरुवाणी अर वूं को रचणहार मं मिलै छै।

हाड़ौती अंचल का आधुनिक गद्य की बिधी बिधान सूँ थरपना डा. कन्हैयालाल शर्मा का संपादन मं छपी पोथी हाड़ौती अंचल को राजस्थानी गद्य सूँ ई मानी जावैगी। ई पोथी मं 11 रचनाकार लेखकां की 24 रचनावां शामल छै। 1. डा. कन्हैयाल लाल शर्मा को निबंध-हाड़ौती की लोक संस्कृति, राजस्थानी का स्वार्थिक प्रतयय (शोध), टाँट्यो (ललित निबंध), 2. डा. नाथूलाल पाठक को निबंध हाडौती मं गणेश पूजा, 3. ब्र मो. शर्मा मधुर को निबंध-हाड़ौती को लीला अर ख्याल, चौबारो (ललित निबंध), 4. डा. शांति भारद्वाज राकेश को ललित निबंध-सोबो, डाल (चतराम), 5. सिरी बालकृष्ण थोलंबिया की आलोचना-भैरू बावनी अर ऊ, को रचनाहार साणोत गीत अर राष्ट्रीयता 6. सिरी दुर्गादान सिंह गौड़ का चतराम संकरजी बड़ी पोड़ी 7. सिरी नंद चतुर्वेदी को हसा्‌य व्यंग्य री सी चतराई 8. स्व. प्रेम जी प्रेम को हास्य व्यंग्य गोबर्या की तकदीर कुड़तो पजामो 9. सिरी शचीन्द्र उपाध्याय की ख्याणी -एक हाथ की मरूत 10. सिरी गिरधारी मालव की काकी चतरी (ख्याणी) सात फेरा (एकांकी) 11. सिरी हरि मोहन प्रधान को यात्राव्रन्त-तीरथ धाम खटकड़ अर धूंधला बाब।

ई पोथी कै अलावा जागती जोत, कचनार, हरावल, मरूवाणी चामल, चिदम्बरा, कंदंगंध, राजस्थआान पत्रिका, राष्ट्रदूत, देश की धरती, बिणजारो, नैणसी नेगचार जसी केई पत्रिकावां नै बी राजस्थानी गद्य कारां को लेखण प्रकासित कर्यो. सिख्,ा विभाग नै बी राजस्थानी की पोथ्यां छापी छै। या मं उजलपख, आखरबेल, सबदसांच, गजरो, मोरपांख, अंतस, अजास, अरू मरू, उरमा रो उजास आद परमुख छै।
हाड़ौती अंचल का राजस्थानी गद्य की दूजी सबसूं मैहत्वपूर्ण पोथी बरस 1999 ई. मं राजस्थानी अकादमी का सैयोग सूं छपी-हाड़ौती गद्यमाला। ई को संपादन डा. कन्हैयालाल शर्मा अर ब्रजमोहन मधुर नै कर्यो चै। ई पोथी मं 5 निबंध 3 ललित निबंध 3 चतराम 1 व्यंग्य 3 शोध आलोचना अर 3 कहाण्यां शामल छै। संपादकां नै ई पोथी में रचनाकारां का नाम का इस्थान पै रचनावां का मेहत्व पै ज्यादा ध्यान द्यो छै। आधुनिक राजस्थानी गद्य की ई पोथी मं सबसूं पैहलो अर सबसूं नरालो निबंध सी. एल. साँखला को सबद की तागद सम्पादन नै बतायौ छै। दूजो निबन्ध छै आचार्य ब्रजमोहन मधुर को दीठएक लोक कथा की। जी पाछै श्रीमति कमला शर्मा को बसंतखेड़ो जितेनद्‌र र्निमोही को आज कारचनाकार सूं शचीन्द्र उपाध्या को धनुष जंग छै। ललित निबन्धा मं. डॉ. कन्हैयालाल शर्मा को गंड़ोलो काजाय डॉ. सियाराम प्रवर को म्हूं बोर होर्यो छूं डॉ. बद्री प्रसाद पंचोली को डोकरी बोल जे मत शामल छै। चतरामां मं दुर्गादान सिंह गौड़ को बाबूजी गिरधारी लाल मालव को दा टूण्ड्यो रामेश्वर शर्मा को बा पाघणा अर ब्रजमोहन शर्मा को व्यंग्य फाणी तोपीवे ई। शोध आलोचनावां मं. डॉ. हरि मोहन प्रधान कोलेख हाड़ोती अंचल की महताउ पुरा संम्पदा ड़ॉ. शांति भारद्वाज राकेश को हाड़ौती अंचल की राजस्थानी कविता रामदयाल मेहरा को थें देशी कपड़ो पहरों री चन्दन बदनी नार ख्याण्यां मंं सिरी रघुराज सिंह हाड़ा की प्रेम्या की पदमणी विजय जोशी की राम फुल्यों विष्णु विश्वास की फूला ई पोथी मं शामल कर'र हाड़ौती की गद्य रचनावां मानी गी छै।

आधुनिक हाड़ौती गद्य साहित्य को मान बधाबां मं अर हाडौती को मानक रूप तै करबां मं ऊपर गणाई पोथ्यां कै अलावा एक महत्वपूर्ण उपन्यास पोथी छै डॉ. शांति भारद्वाज राकेश लिखि उड़ जा रे सुवा ई नै केन्द्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली की ओर सूं पुरुस्कार भी मिल्यों छै।
सिरी गिरधारी लाल मालव को हाणी संग्रे-खींचड्यां की सौरम प्रेम जी प्रेम की बिंधग्या जे मोती बी महातऊ पोथ्यां छै। ई कड़ी में एक कहाणी संग्रै आयो छै विजय जोशी को आसार। फुटकर कहाण्यां मं अम्बिकादत्त की छांवली, जयपाल की अटालो, सी.एल. साँखला की छुप्या मुलजिम, कजोड़ मस्ताना की गांवधेर आद-आद घणी चरचित होई।

हाडौती शीर्षस्थ गद्य लेखक-निबंधकारां के बीच सी.एल. साँखला नै ज्या रचनावां सूँ इस्थान बणयो छै वां मै शबद की तागत (निबंध) साहित्य अर राजनीति, साहित्य मं समसामयिकता बर कालजयता, सुणबा की सक्ति, चामला बंधा की नांई भरतो हाड़ौती साहित्य अर समीक्षा छराछरा समाज मं अपणओपण हेरती खीचड्‌यां की सौरभ आद परमुख छै। ओर बी कतनाई रचनाकार छै जे हाड़ौती लेखण मं लाग्या हुया छै। पण हाड़ौती मं प्रकासम औसर कम होबा सूं छप'र सामनै न्ह आर्या। उस्यां या बात कड़वी तो लागै छै क हाड़ौती मं पद्य लेखण की तुलना मं गद्य लेखण कम होर्यो छै। क्यूंक प्रकासण हाली बात तो नाली छै गद्य रचनावां पै चर्चा गोष्ठयां बी बोत कम हो पावै छै। जदकि पद्य में कवि सम्मेलनांके बारै बी आया दनां काव्यगोष्ठ्यां चालती ई रै छै। पाठकां कै तांई हाड़ौती को प्रकासित साहित्य आसानी सूं न्ह मिलबो बी लेखण मं कमी को एक ठोस कारण छै। तो बी आबाला समै मं गद्य की तमाम विधावां मैं हाड़ौती लेखण सांवठौ होवैगो, ई बात की पूरी उम्मीद छै।

हाड़ौतीकासिरमौररचनाकार
कोटी, बूँदी, बाँरा अर झालावाड़ हाड़ौती अंचल मान्यो जावै छै। चामल की कलकल-छलछल करती जलधारा सूँ तरबतर हाड़ौती धरा घमओ घणो अन्न धन जिपजा'र जण जण मं हरख बधा'र जिंदगाणी कारुपाला सबद उकेरबा मं कदी पाछ न्ह रही। दुरभाग की बात ोय ा छै क ई अंचलकी बोली-बाणी नै देश का लोक दणी समझ ही न्ह सक्या. या फेर वां नै समझबा की कोसिस ही न्ह करी..। ओर तो ओर आपणओ आधो राजस्थान ही हाडौती नै अजनबी मान्तोय र्यौ। हाड़ौती की तरै ढूँढारी मेवाती भी नाली नाली पड़ी रही। ई मामला मं सबसूं भागवान मारवड़ा छै, जिण नै राजस्थानी को डंको आखा मुलक मं बजायो। साहित्य की हरेग विधावां मं घणओ घमो सिरजण कर'र केनद्र् सूं राजस्थानी मानीता की माँग उठाई। पण राजस्थानी मानीता के लेखे आखा राजस्थान की सगली बोल्यां मंं मेलजोल अर एकरूपता जरूरी छै। ई लेखे राजस्थानी अकदामी नै मावड़ाक की तरै हाड़ौती, ढूँढाती, मेवाती के तांई बी अपणाबो सरु कर द्यो। जे राजस्थानी नै मजबूती देबा हाली पैहल छै।

आज राजस्थानी सगला प्रान्त मं एक दमदार भासा कोसरुप ले चुकी छै। लेख मं हाड़ौती अंचल को खास सिरजण दरसाबो ई म्हारो मकसद छै। इ अंचल मं राजस्थानिी सरिजण हाकवि सूर्यमल्ल मिसण सूँ मान्यो जावै छै। संवत 1897 (सन् 1841 ) मं मिश्रण जी नै गद्य-पद्य को ग्रन्थ भास्कर रच्यो। उस्या ं1808 मं न्यू टेस्टामेंट बाइबिल को हाड़ौती मं अनुवाद हो चुक्यो छो। पुरामआ जाणकारां कोतो कैहबो छै क पन्द्रवी सदी मं शिवदास गाउण अर अचलदास की रची वचनिका हाड़ौती (राजस्थानी) का पैहला ग्रन्थ छै।

हाड़ौती का राजस्थानी साहित्य सिरजण की विधिविधान सूँ सुरूआत करबाला हाला रचनाकारां मं सिरीमान रघुराज सिंह जी हाड़ा, स्व. सिरी गौरीशिंकर जी कमलेश, डा. कन्हैयालाल शर्मा, शचीन्द्र उपाध्याय, डा. शांति भारद्वाज राकेश स्व सिरि जमनाप्रसाद हाड़ा राही, सिरी बालकिशन जी थोलंबिया, स्व. सिरी दुर्गादान सिंह, सिरी गिरधारी लाल मालव जस्या सामर्थवान कवि-लेखक र्या छे। सिरी दुर्गादान सिंह, सिरी हरिबल्लभ हरि, रसीद अहमद पड़ाही, डा. नंदन चतुर्वेदी, डा. प्रदीप्रसाद पंचोली, सिरी रमेश वारिद, सिरी नाथूलाल शर्मा निछर, मुकुट मणिराज, विजय कृष्ण व्यास सिरीमती, प्रेमलता जैन, कसुम जोशी, सावित्री व्यास, राधेश्याम शर्मा, विक्रमसिंह सोलंकी, चन्द्रदत्त तपिष, जयपाल, कजोड़ीलाल जस्या केई रचनाकारां को राजस्थानी लेखण उल्लेखजोग छै।

ऊपर गिणया सिरजणाकरां सूं पैली वे रचनाकार याद करबाजोग छे जिणनै सुरंततरता संग्राम की बखत आजादी की गीत गाया। यां मं सिरीमान भैरवलाल जी कालाबादल, सिरी गोपललाल जी उपदेशक, सिरी गौरीलाल जी, सिरी मोतीलालजी, सिरी घनश्याम जीसक्से,ना प्रमुख नाम छै।
हाड़ौती अंचल का आरम्भिक राजस्थानी सिरजण मं पोथी प्रकासण क बज्याई फुटकर रचनावां जादातर सामनै आई। पैली प्रकासण की साधना सुविधा बीआसानी सूँ न्ह मल पावै छी। तो भी अणबाच्यां आखर, हरदौल, फूल केसूल, घूघरा, खूँगाली, काचीगडार, बिंधग्या ज्ये मोती, रामचंद्रा की रामकथा, औलमो, डंक, म्हारी कवितावां, चमचो जसी राज्सथानी पोथ्यां छपी. प्रकासण द्रिस्टी सूँ सत्तर का दसक पाछै आछ्यो काम होबा लागग्यो। चामल कचनार कदंम गंध सरीखी पत्रिकावां छपी। हाड़ौती शोध प्रतिष्ठान कोटा नै हाड़ैती अंचल के राजस्थानी कवि पोथी प्रकासित करी। स्व. गौरीशंकर कमलेश को खण्डकाव्य धारा को धणी, थापाथूर, रसीद अहमद पहाड़ी को झणकार (काव्य) सन 1968 मं छपग्यो छो।

डा. शांति भारद्वाज राकेश को उपन्यास उड़ जा रे सुवा अर सिरी गिरदारी लाल मालव को कहाणी संग्रै खीचड्‌या की सौरम राजस्थानी गद्य की शानदार पोथ्या छै। आ. बृजमोहन शर्मा मधुर को काव्य संग्रै रमझोल भी छप'र सामनै आयो। सिणगार को बेजोड़ कवि दुर्गादानसिंह को काव्य संग्रै भी छप्यो। राजस्थानी साहित्य प्रकास मं राजस्थानी अकादमी बीकानेर का सैयोग सू हाड़ौती अंचल को साहित्य भी छपबा लाग्यो छो। पुरूषोत यकीन को काव्य संग्रै प्रीत पराई नै कुण जाणै सी. एल साँखला का काव्यो पोथी कलजुग रामदयाल की कलपती मावता मुलकतो मनख मोत्या री खोज ओम नागर अश्क की गलज पोथी छियापतराई प्रीत भी प्रकाशित होई। विजयजोशी कीकहाणी संग्रै मंदर मं एक दन भी छप्यो। या क बारै ओर भी पोथ्या प्रकासित होई...।
हाड़ौती मंचा पै हास्य-व्यंग्य कवि का रूप मं धन्नालाल सुमन घमो लोकप्रियो होयो। विश्वामित्र दाधीच, दुर्गादानसिंह, मुकुट गौरस, बाबूलाल बम, जगन्नाथ गोचर, चन्दा पाराशर, गोविन्द हाँकला, देशबन्धु दाधीचख, जस्या कई मंचीय कवि सामने आया।

हाड़ौती अंचल को राजस्थानी सिरजण कोरो मंचीय काव्य ही न्ह र्यो। घनश्याम लाडला, सिरी लक्ष्मीनाराण मालव, रामनारायण राठौर चन्द्र, मेहन्द्र कुल श्रेष्ठ, बृजमोहन शर्मा मधुर, अरविन्द सोरल, बी.एल. शर्मा, चांद शेरी डा लीला मोदी, कृष्णआ कुमारी, पुरुषोत्तम यकीन, सी.एल. साँखला, अम्बिका दत्त, गीता जाजपुरा, अतुल कनक, विजय जोशी, हलीम आइना, ओम नागर अश्क, रामबिलास रखवाला, चौथमल प्रजापत, जयसिंह आशावत, चंदालाल चकवाला, विष्णु विश्वास, निशामुनि गौड़, राजेन्द्र पंवार, आशा बाहेती, चतुर्भुज मेघ, जगदीश निराला, बद्रीलाल दिव्य, सुभाष नागर, श्याम अंकुर, शिवचरण सेन शिवा जस्या रचनाकार सिरजण मंजुट्या छै। हंसराज चौधरी, किशनलाल वर्मा, जितेन्द्र निर्मोही, श्रीमती कमला देवी शर्मा को राजस्थानी साहित्य सिरजण अपणो अपणओ अणूठो इस्थान राखै छै।

हाड़ौती अंचला का राजस्थानी सिरजण नै बढ़ावो देबा तांई कोटा की ज्ञान भारती संस्था नै स्व. गोरी शंकर कमलेश का नाम सूं हर साल एक राजस्थानी पोथी नै पुर्सकार देबो सरु कर्यो छै।
राजस्थानी अर हिन्दी भासा की कतनी ई पत्रिकावां राजस्थानी रचनावां नै इस्थान दै री छै। यां मं जागती जोत, कदंब गंध, बिणजारो, नैणसी, दैनिक देश की धरती, कोटा क्रानिकल, नर्मदा, अरावली उद्घोष अभिव्यक्ति, समाज विकास, आखरजोत, नई शिक्षा आद आद...। ईसाल का आरम्भ मं (जनवरी 2005 मं) सी एल साँखला का सम्पादन सं शब्द प्रभात नाम सूं एक संकलन आयो छै। हिन्दी बासा का ई राष्ट्रीय साहित्य संकलन मं हाड़ौती अंचला को केई नुवा-पुराणा रचनाकार बी सामल छै। यां मं केई नुवा हाड़ौती का राजस्थानी रचनाकार उभरक' समानै आया छै। जस्यां देवकीनन्नद शर्मा रसराज, लटूरलाल मेहरा, रामस्वरूप रावत, आर.सी, मीणा, महावीर मालव, परमानन्द गोस्वामी, कृष्ण कुमार श्रमा, धनराज टांक, सत्य प्रकाश टैलर पेन्टर, सुनील महावर, मनोज सोनी, मुकुट बिहारी मीणा, महेश पंचोल,ऋतुराज बसंत...।

राजस्थानी सिरजम मं लाग्या हाड़ौती अंचल मं ओर भी कतनाई नाम छै। सगला नाम गिणाबो घणो मुस्कल छै। हो सकै छै लोठा-मोटा नाम भी म्हूँ चूकग्यो होऊं तो माफी चाबूँगो। हाँ, नुवा-नुवादा दो-च्यार फोरी-मोटी रचना माँड लेबा हाला को नाम गिणाबो जल्दबाजी को काम मान्यो जावैगो।
ईतरै सूँदेखां तोपतो चालै छै क' हाड़ौती अंचल मं राजस्थानी को भरपूर सिरजण होबा लागग्यो। मुँजबानी मंची गती ई न्हा, लिख्यो-छप्यो साहित्य भी अब हाड़ौती की धरती पै हिलोलां लेवा लागर्यो छै। जीं मं. अणगणित मन-पंछी जी भर भर क' किलोलां करै छै अर जिंदग्यानी नै सुफल बणावै छै।

लाड़ोघोड़ीपै
(पचासेक घरां की बस्ती को एक गाँव खूमलो। गाँव मं बैरवा अर गूजरां का परवार। प्रेम सूँ रहबो। लोगां मं मेलजोल को भाव। ब्याव-सावा का दन। रामजीवम जी बैरवा का बेटा को लगन आयो।)
दाखां- अजी सुणो छो ! तड़कै लगन झलैगो। थाँ टाकरड़ै जा'र गुड़-पतासा तो ल्याओ।
रामजीवण- हाँ, री, रूघनाथा री माई ! म्हूँ तो भूल्गोय छो।
दाखां- भूलैगो तो कस्या काम चालैगो ? आखातीज तो आगी। ब्याव का सारा सामान लेणा छै।
रामजीवण- सब आवैगा। चन्ता मत कर। म्हारा नाऊं सूं तो सेठ जी बी न्ह नटै। गुड़तै ल सूं ले'र लत्तो-चींथरो सब दै देगा।

दाखां- तो फेर देर क्यूँ करो छो. बेग जाओ।..म्हूँ गाँव की दुल यां नै कोको दे आवूं छूँ।
(रामजीवण जी जूत्यां पहरै छै। स्याफी गला मं पटक'र खड़ जावै छै।)
(थोड़ा दन पाछै)
काकी चतरी- रुघनाथा ! थारा तैल चढग्या। तू तैल्यो बांद्यो होग्यो...।
रूपा भाभी-लाड़ा जी के दो दन पाछै लाड़़ी भी आज्यागी।
काकी चतरी-पैली ताोरण मारणी पड़ैगो।
रूपा भाभी- लाड़ो घोड़़ी पै मारैगो तोरण...।
दाखां- घोड़ी भी मँगावेगा री रुपा।
काकी चतरी-रीत का रायता करणी पड़ैगा।
रुपा- या बगत ई छै घोड़ी पै बैठबा की। फेरतो सारी जिंदग्याणी धूलधाणी छै।
काकी चतरी-सांची कैह छै तू।

दूसरोदरसाव
(राजजीवण जी का बेटा रुघनाथ की जान आगी। फतेपर मं गाजा बाजाहोर्या छै। लाड़ी के घनै तंदूर्यां अर पूँपाउया बाज री छै)
भायो झघदू- पटेल जी ! गजब होगी...।
पटेल जी- कस्यां हांई होयो।
झगदू- काँण0 काइदा सब टूटग्या।
पटेल जी- चोखां समझ'र कैह! होयो कांई ?

रगडू- ्‌जी, म्हूँ बताऊ। गाँ मं बैरवान् की जान फर री छै।
पटेल- चोखी बात छै। आपणा गाँव की सोभा बधी...।
झगदू- पण, लाडो तो घोड़ी पै बैठ्यो छै!
पटेल-(मन मं सोचबा लागै छै)
बाबू मेम्बर- क्यूँ सोच मं पड्ग्या पटेल जी ?
बदरी माटसाब-झगदू-रगडू तो मूरख छै।
सरपंच जी- मनख सब स्यारखा। कांई ऊँच-कांई नीच ?
बाबू मेम्बर-लाड तो लाडो ई होवै छै..ई टैम नै तो घोड़ी पै बैठबो ई चाइजै।
बदरी माटसाब- दूसरा की खुसी नै खुसी मानबो चाइजे। यो ही मनखचारो छै।
सरपंच जी- माटसाब सांची कहै छै।... तो आपण भी ई खुशी मं सामल होवां.।..या देखो जान आरी छै।
(सब का सब ऊबा होग्या। बाजा बाजर्या छा। लाड़ो घोड़ी पै बैछ्यो छो। माथा पैसेवरो दमक र्यो छो. गाल मं माला पड़ी छी। बगल मं कटार छी। पावां मं चमकणी मोडड्या पैहर्या छो।)
पटेलण-पटैल जी! लाडो तो रुपालो छै।
पटेल जी- म्हनै तो गुणवान भी लागै छै। गुणीस्या की छोरी कन्या को भाग खुलग्या।

(लाडो घोडी पै तोरण मारै छै। थोडी दे'र पाछै लाड़ लाडी का फेरा पड़ जावै छै।)
(परदो लटकै छै)

म्हारीफैली-फैलीदल्लीजातरा
व्हाँ दना म्हूँ कोलेज को नुयो इस्टूडेन्ट छो। गाँव सूँ आर कोटा सैह मं रहबा-पढ़बा को आणंद नरालो ई छो। उस्यां आणंद रूप्या पी'सा हाला लोग ई लूटै छै। म्हारै गोडै तो जरुरी खरच का पी'सा भी न्ह रै छा। ई लेखै टेम्पू-टैक्सी मं बै'ठबा बज्याई कोसां तांई तांई पसर्या कोटा मं म्हनैं जादातर पैदल जातर ई करणी पडै छी। फेर भी कोटा की 'लोकेशन', नूवी-नूवी तरै का पैड-पौधा सूँ मर्या बाग बगीचा नैं देख'र घणो आणंद आवै छो।

एक दन एक दो मित्रांनै म्हंसू खी कै का'ल दल्ली चालणों छै। त्यार होजा जे। म्हनै खी, यार म्हारै गोड़े अतनो करायो खरचो कोईनैं कै म्हूँ दल्ली मं सैर सपाटो कर सकूँ। साथी भाइला हाँस'र बोल्या-एक कोलेज इस्टूडेन्ट हो'र उसी बात करै छै के...चन्ता करबा की जुरत कोईनै। बना किराया खरचा कै चालैंगा। दो-च्यार न्हूँ सैकडून-इस्टूडेन्टां की रैली चालैगी नूवी दल्ली।
सीतामात दल्ली देखबा को औसर जाण'र मन घणो ई हरख्यो। तीन-च्यार छोटा इस्टूडेन्ट जे गाँव रैबा हाला छा, बी म्हनैं साथ लेल्या। रात की सात-आठ बज्यां रेलवाई का टेसण पै जा पूग्या। प्लेटफोरम नम्बर दो पै' आगराफोट नाऊं की रेल मं बैठबा कांण घणा सारा इस्टूडेन्ट हाथा नं मं बैनर अर झंड्या ले'रजोर जोर सूँ नारा लगार्या छा-दिल्ली चालो ! दिल्ली चालो ! म्हूँ बी वूँ टैम च्यार-पाँच इस्टूडेन्टां पै एक लीडर बणग्यो। म्हारै तांई बी एक झंडी मिलगी। मन मं ई बात को गर्व होर्यो छो कै आज कै दन या रेलगाडी आपणा बाप की ही छै।...बच्यारा टिकट हाला जातरी रेल मं न्ह घुस पाया तो घबराया हुआ अती-ऊँठी फर र्या छा। दो च्यार जणा नै शकायत ककरी तो पुलीस बी आई। पपीया बजाता संतरी डंडा नै डब्बा-डब्बा का गेट पै फटकारबा लाग्या। म्हूँ घबरायो कै अब कांई होवैगो...?अतनाक मं ही जोर शोर सूँ आवांजां सुणी "नहीं चलैगी नहीं चलैगी-लाठी गोली नहीं चलैगी।" सुरण'र हिम्मत बंधी।

आखर आधा घंटा ताई पुलस कारवाई होई। पण कोई नतीजो न्ह खड्यो। कोलेज का इस्टूडेन्ट कुणका बाप की मानैं छै ? थाक'र पुलस पाछी बावडगी।...सीटी बाजी। अर गाड़ी छुक छुक करती चाल पड़ी। बैठबा मं सीटां तो मली कोईर्न। डब्बा मं मनख अस्यां भर्या छा जाणै तो कबाड़ा मं टूट्यो फरनीचर भर्यो होवै। एक की टां दूजा की टां मं फँसरी छी तो दूजा को हाथ तीजा की बगम मँ उलझर्यो छो। तीजा की नाक चौथा की गंदी हवा नै सुँघबा बेई मजबूर छी। स्लीपर मं घणी देर सूँ सूती आरी सवार्या नै अब मालम पड़ी छै के रेल को सफर कस्योक होवे छै ? सवाई माधोपर सूँ आगै का टेसणा का नांव पडबा मं म्हारै घणौ आणंद आयो। तरै तरै का टेसण पैली बार देख्या छा। लोगां नै नींद का ओटक्या आबा सूँ वै दूसरां का काँधा-मूँडा पै अस्या गर पडै छा, जाणा कठफूतली को तागो टूटग्यो होवै...।

आखी रात ऊबा रेहबा सूँ म्हारी पींड्या तरडबा लागगी छी। पण दल्ली देखबा को उछाव मँदरो न्ह पड्यो छो।
आखरकार द न उगतां गाड़ी दल्ली का टेसण पै आ पूगी छ। म्हनैं तो सोची की कै दल्ली तो काच की नांई पलीका मारती होवैगी..पण रेल की खड़की मं सूँ सड़ी ब्बसी काची बस्त्यां दीख री छी रेलपटर्यान कै साइरै बस्या ये झूग्गी झूँपड्यान मं रैहबाला लोगबाग घणा ही मैला कुचैला छा।..साइद दल्ली यां सूं नाली होवैगी..।
नूवी दल्ली का टेसणा पै सगला जातरी उतर्या छा इस्टूड़ेन्टां की नाराबाजी सुण'र टीटी-वीटी सब छापलग्या छा। सबकी लेरां म्हां बी प्लेटफोरम सूँ बारै खड'र सड़क पै आग्या। घणी चौड़ी सड़क्याँ अर ऊँची ऊँछी इमाराताँ ने देख र म्हूँ तखत रैग्यो। कांई ये एक जणा नैं बणवाई छै ? कांई दल्ली मं रैहबा हाला मनखा गोडे अतना नोट होवै छे ? जस्या कतना ई सवाल मन मं उतता र्या।
इस्टूडेन्टां की रैली लाल किया सूँ संसद की आड़ी सरू होई। च्यार-च्यार लैण्यां मं सगा इस्टूडेन्ट जोर शोर सूँ नारा लगाता जार्या छा।
म्हाँकी माँगा पूरी करो।
कोलेज मं सबनै एडमिशन द्यौ।
लड़क्यां की फीस माफ करो
पढ़बा लिख्या बेरोजगार नै भत्तौ द्यो।
अस्या जोर बी कतनाई नारा छा।

संसद भवन का चौक मं सारा ई एकठा होग्या छा। बारै सूं संसद भवन घमओ साफ सुहाणो लागर्यो छो। संसद के सौ फिट आगे लोह्या का पाइपां की सीमा बणा मैली छी, ज्याँ घुड़;सवार पुल लगा राखी छी। काँधा पै भरी बंदूक्यां ताण्यां...जरा सो काकरो बी उछल'र वांकै लाग जावै तो जाणै गोल्यां सूँ भून देगा। खैर संसद का चौक मं घणी देर तांई भाषण बाजी चालती री। म्हाँ च्यार पाँच मित्त दल्ली देखबा तांई निकलग्या।
स्यामकी छै बज्यां नूवी दल्ली का टेसण पै पाछा आणो छो पम म्हाँ गेलो डुलग्या। घणी कोसीस करी, पण टेसण मिल्यो ई कोइनै। म्हूँ जाणै छो क दल्ली जस्या शैहर मं कोई सूं जादा पूछताछ तकबो खतरा सूँ खाली कोईनै..। ई लेखै म्हानै एक ओटो करल्यो। ओटो हालो म्हाँकी मूरखता नैं जाणग्यो छो। वूनै म्हां बिठाल्या। थोडी देर अठी वठी घुमार वूँई ठाम पै ले आयो। बोल्यो आग्यो टेसण...। पाँच जणा का पच्चीस रुप्या वूँनै कुसकाल्या।

कोटा जाबाली गाडी ठसाठस भरगी छी। कस्या बी डब्बा मं पाँव मैलबा की जगै न्ह बची छी। अब म्हाँ कांई करता ? किराया का पीसा छा कोइनै, कै दूजी गाडी मं चल्या जाता। वूँ ई गाडी मं आणो छो। ई लेखै ओरां की देखयां देख म्हां बी डिब्बा कै ऊपर जा चढ्या।

ठण्ड का दिनां मं रेल कै ऊपर बैठ'र चालबो मामूली बात कोइनै। अपराध तो छै ही, ज्यान की बाजी लगाबो बी छै। आखरकार रात की ठण्ड मं रैल ऊपर लागती ठण्डी हवा सूँ म्हांका हाथ पांल लग लग धूजबा लागग्या...। म्हानै लागी कै अब तो मौत काई सिंगल होग्या दीखै छै। हरैक टेसण पै चाई बीपो सरू कर्यो। दो मिनट की गरमाई, फेर वा की बाई बात। रैल का डब्बा कै ऊपर पकड़बा का पाईप भी कोइनैं छा। धूजणी बधताँ ई अस,्‌या लागै छी कै अब बचबो मश्कल छै। भूल्या बिसर्या देवी देवता याद आग्या। आखरकार एक तरकीब सूझी। सारा का सार बाथां भर'र गुत्थमगुत्था हो जावाँ। मरैगां तो सारा ही अर बचग्या तो बी सारा ई...। अस्याँ ई करी। डब्बा क' ऊपर बैठ्या सब का सब गुत्थमगुत्था होग्या.. साँच्यांई बोत गरमाई मैसूस होई। बिसवास जाग्यो कै अब मरैंगां तो कोईनै।

नठा जा'र सूरज उग्यो। सूरजी की किरणाँ नै म्हाँका हाथ हापावं मं ज्यान भर दी। माधोपर का टेसण पै फेर चाई ली। ताती ताती चाई पेट मं उतरतांई ताजगी आगी छी। म्हनैं सूरज नाराण को आभार परगट कर्यो। ज्यानैं म्हाँकै तांई नुवी जिंदगी बकसी।
गाडी कोटा टेसण पै आ ऊबी होई। सगला इस्टूडेन्ट नारा लागता जार्या छा-'छात्र एकता-जिन्दाबाद! जिन्दाबाद!'

बालपणां को पोथी परेम
बालक को चंचल मन कागज की पोथी मं बडी मुस्कल सूँ रम पावै छै। पोथी मँ मंड्या शब्दा में ध्यान देबो (केन्द्रित करबो) और बी कठिण काम छै। ई लेखै या बात जरुरी छै के बालतक का चत नै पोथी की आड़ी खींच लेबा के तांई रंग्या-चंग्या फोटू बी छप्या होवै..। सबद सीधा सादा अर बेगा समझ मं आबाला होवै। बालपणा सूँ सीधी जुड़ी बातां ई बालक का मन नै अपणै सूँ जोड़ सकै छै...।
पण म्हारो बालक मन ई बात को अपबवाद र्यो। अपवाद के यो अपणै आप ई न मालम कद सूँ पोथी-प्रेम मं डुबक्यां लगाबा लागग्यो छो. स्कूली पोथी मं तो राजी-बेराजी सबी डूबै छै। पण म्हारो आसय दूसरी तरै की पोथ्याँ सूँ छै। आज का कोमिक्स, रंगी चंगी बाल पत्रिकावां तो बालक का ध्यान नै बरबस खींच लै छै। जद म्हूँ चार-पाँच किलास मं पढै छो, वूँ टैम नै बालपत्रिकावां अर कोमिक्स को नांव देहात मं सुणबा मं न्ह आवै छो।

बात सन इगेत्तर-भैत्तर की छै। ई बगत म्हूँ चौथी पाँचवी को विद्यार्थी छो। थोड़ो सो लिखबो पढ़बो सबकी तरै म्हूं बी सीखग्यो छो। पण, म्हारा मन जाणै क्यूँ एक विचार बार बार जोर मारै छो। इस्कूली पोथ्यां के अलावा दूजी पोथ्यां नै बी जाणूँ-पढूँ अर म्हूँ बी कांई न कांई माँडू...। यो बिचार छोटा सा बाल मन मं साल दो तांई यूँ कुल मुलाटा करतो र्यो। ई कै साथ ई साथ ई संसार (स्रिस्टी) नै जाणबा समझबा की ललक अर मनख जीवण को रैहस्य मालम कर लेबा की हूँस बी बर्योबर ताफढ़ा करबा लागगी छी। उस्याँ या बात जबरला बुद्धिमान के गलै उतरेगी के उतरी सी ऊमर मं बालक का चंचल मन मं अस्या भटभोड़ सवाल भी पैदा हो सकै छै। पम जे भुगतै वू ई जाणै के साच काँई छै। म्हारा मासूम बालमन मं ्‌सया भटभोड (कठोर और खुरदरा) सवाल उठता र्या। म्हारो मन रूपी बीज भावी पेड बणबा के तांी जमीन मं घाँसा (अंकुर) मैलबा लागर्यो छो।

म्हारा गाँव टाकरवाड़ा सूँ तीन-च्यार किलोमीटर दूरै बूढ़ादीत कसबा मं तेजाजी को घमओ जोरदार मेलो भरै छै। मेलो सबके ताँई आणंद दायक लागै छै। बालक-बुड्ढा लोग-लुगाई सब अपणी अपणी पसंद का खेल तमासा अर लेण-देण करै छै। छोटा-मोटा बालकान का मन मं मेला मं जाबा को छावो बँधे, वू कैबहा मं ई न्ह आवै। म्हूँ बी म्हारा दांई दड़ का भाइलाल की लेरां मेला मं जातो। बड़ी मुस्कल सूँ रप्या दो रप्या मेला की खती का रुप म लगता। खुसी खुसी याँ नै लैर मेलै मं जातो बलबलती झरझरती रसदार जलेबी की सौरम नाक मं जातां ई म्हारा आइला-भाइला जेबाँ मं सूँ चवन्या-अठन्या काढ'र जलेबी तुलाबा लाग जाता..। म्हूँ वाँनै छोड़'र मेला की भीड़-भाड़ मं घुस जातो। तरै तरै का खेल खिलौणा, लप्पक लाडू (फूलकणा) रब्बड़ का रींछ-बाँदरा, लाली जरख, गुड़ढा-गुड्ढी, पूँपाड़ी, पपयो, बंसरी, गेंद, सलीमो, चुछमा और न जामऐ कांी कांई नै देख देखर मन उछाला भरतो। सारी की सारी चीजां बाथां मं भर लेबा की इच्यां होती..पण, चंचल मन, अचाणचक दीखी कताबां की दुकान पै इस्थिर हो जातो। तरै तरै की पोथ्याँ ने देखर मन अतनो हुसतो जाणै मोत्यां को खजानों मिलग्यो होवै। म्हूँ एक एक पोथी नै उठातो, एक दोक पन्ना पलटतो चोखी लागती पण कीमत देख'र पाछी मैल देतो।

मीरा का भजन, कबीर का भजन, सूरदास का पद, रसखान का सवैया, देशभक्ति का गीता, महात्मा गाँधी, सुभाष चन्द बोस, भगतसिंह जस्या महापुरुषान की जीवन्या..आद दरजनूं पोत्थ्यां मन भाती। नेकर का खल्या मं सूँ मेला की खरती का दो रुप्या काढतो अर च्यार-पाँच पोथ्यां उठा लेतो। म्हारा आइलो भाइला अपमआ अपणा खेलकणा नै स्यान सूँ एक दूजा नै तांई बताता। म्हूं या सोच'र छानमून रैहतो के खेलकणा तो दो च्यार दन पाछै टूट-फूट जावैगा जद के पोथ्यां तो हमीसा ई आणंद पैदा करैगी अर ज्ञान बंधावैगी।
जद घरवाला नै (पिताजीन नै) मालम पड़ती के वां को भायो (म्हूँ) न खेलकणा लायो अर न सेवड़्या-जलेबी खा'र आयो..मेला की खची नै च्यार कताबां के सांटे फालतू खरत कर्यायो..। या जाण'र वै घणा नारज होता डाटता। म्हूँ छानमून सुण लेतो। पण पोथी नै फालतू न्ह मानतो।

उस्याँ म्हारा पिताजी बी अंगूठा छाप कोइनै छा। पढबा को चाव तो वाकै बी छो। पुराणा समै की देसी लिखाई मं मँडी महारा गांव की हाड़ौती रामाइण नै वै पढ लै छा। चौथी किलास पढ्या पण आज का दसवीं-बारवीं पास बी होड न्ह कर सकै। आयुरबैद का पाका जाणकार। जीवन को पूरो अनुभव होबा की वजै सूँ वै म्हारै गोडै कबिता की कताबा अर म्हनै कबिता माँडतो देख कुपित हो बैठता; कैहता-कबिता सूँ पेट न्ह भरै। कबिता माँडबो खाबा मं न्ह दै। जिन्दगी हुया बी म्हारै भीतर को रचना-शौक दिनांदिन बधतो ई र्यो। वूँ टैम नै म्हूँ कतैई न्ह जाणै छो, के रचनाकारी सूँकोई होवैगो ? ऊ सूँ फाइ दो छै के नुकासण, ई सूँ भलाई मिलैगी कि बुराई ? तो बी जाणै कस्यो रंग छो, के राँचतो ई चल्यो ग्यो...।

संयोग की बात छी के पिताजी अधेढ़ ऊमर मं जा'र गाँव का शाखा डाकघर मं डाकपाल बणग्या। एक सौ रुप्या सूँ बी कम तनखा मं वै डाक लावै-ले जावै, गाँवड़ा मं बाँटे अ लिखाई-पढ़ाई को सारो काम बी खु ई करै। वूँ टैम नै सम्हूँ साइध छठी किलास मं पढ़ै छो। पिताजी का डाकखाना का काम मं आखर म्हूँ बी हाथ बँटाबा लागग्यो छो। ई समै एक दन एक सूची पत्र म्हारै हाथ लागग्यो। तरै तरै की पोथ्यां को नावं, कीमत अ पतो-ठिकाणो बाँच'र म्हारी खुशी को पारवारा न्ह र्यो। डाकखाना मं सूँ पोस्टकाट ले'र किताबां को ओडर लिख भेज्यो। घर बैठ्यां ई 'बी.पी.पी' आ पूगी। ...अब तो नूई नूई पोथ्यां मँगाबा को सलसलो ई चाल पड्यो। सरू सरू मं धारमिक पोथंयां जादातर मँगावै छो। कतनी ई पुस्तक कम्पन्यां का सूत्री पत्र म्हारै गोडै भेला होग्या छा। गीता, रामाइण, महाभारत, सुखसागर, प्रेम योग का तत्व जसी कतनी ई ऊँची ऊँची पोथ्याँ म्हारै गोडै आगी छै। जद सूँ म्हूँ आठवीं किलास मं पढै-गुणै बी छो, एक छोटो सो धारमिक पुस्तकालयै म्हनै बणाल्यो छो। ोकरी किताबां भेली न्ह करके म्हू वां नै पढै-गुणै बी छो। बचपण की प्रबल धारमिक भावना की बजै छी के म्हूं गीता-ामाइण को पाठ बी घरनै ई करै छो। धारमिक दिखावो म्हनै चोखो न्ह लागै छो. कोई बी न्ह जाणै छो के छोटी ऊमर मं बी म्हूं एक तरै की भक्ति मं डूबो हुयो छो। वूँ टैम नै म्हनै गीता को पन्द्रवों अध्याय मुँह जबानी हो ग्यो छो....।

म्हूँ ज्यूँ ज्यूँ बडो हो ग्यो, आगै की किलासां मं चढतो ग्यो त्यूं म्हारो पोथी प्रेम बी बधतो ग्यो. अब धारमिक पोथ्यां के अलावा सामाजिक, इतिहासिक, दार्शनिक, विज्ञानिक, शैक्षणिक अर राजनीतिक बिसयान सू जुड़ी पुस्तकां बी चोखी लागबा लागी। आज तो म्हारै गोडै हिन्दी अर राजस्थानी की दरजनूं पत्र-पत्रिकावां आवै छै। लोग म्हनै एक छोटो-मोटो लेखक बी मानबा लागगश्या। पण सांची बात तो या ई छै के म्हारै तांई एक लेखक बणाबा मं म्हारा बालपणा का पोथी प्रेम को ई हाथ छै। जद सूँ पोथ्यां हाथ लागी तद सूँ तुक बंद्यां की सरुआत बी म्हनै कर दी छी।
कोटा का अखबारां नै रचनावां छाप'र मन को आतम बिसवास पाको कर्यो। म्हारी प्हैली प्हैली हाड़ौती रचना जून 1979 में दैनिक देश की धरती ने छापी। दत सूं लेखण के संग प्रकासण को सिसिलो आज तांी चाल र्यो छै। देश मं ख्याति प्राप्त प्रत्रिकावां-शिविरा पत्रिका, मधुमती, जागती जोत, अरावली, उद्घोष, अभिव्यक्ति, कदम्बगंध, नई शिक्षा, जन अभियान, आखरजोत, साक्षरता संदेश, बिणजारो, नेगचार, चिदम्बरा, बच्चों का देश, वैद्या सरखा आद आद म्हारा लेखण के तांई पूरा सम्मान देती आ'री छै। शिक्षक दिवस का दो दरजन ग्रंथां नै म्हारी रचनावां अपणाई। अर' राजस्थान साहित्य अकादमी का संस्मरण ग्रंथ-'यादों के वातायन' नै म्हूँ एक 'संस्मरण-लेखक' का रुप मं इस्थापित की कर्यो...।

हाड़ौतीमेंबालगीत
हाड़ौती अंचल की राजस्थानी भासा मं गीत रचना की कोई कमी कोईनै री। सगलो हाड़ौती साहित्य गीतां सूँ ई भर्यो छै। बार-थ्वार, होली-द्वाली, मावस-पून्यू, सगाई-ब्याऊ की बखत लुगायआं तरै तरै का गीत मीठा अर सुरीला कंट सूं गावे छी तो सुणबाहाल लोगां का मन मोरड्यां की नांई मचलबा लाग जावै छा। दुख-दरदां नै भूल जावै छा। याँ गीतां का रचनाकार कुण छा ? ई बात को पतो ई न्ह चालै। सायद ये गीत समूव (समूह) मं बणै छा। आधो अंतरो कोई बणावै छी तो आधो कोई ओर जोड़ै छी। मरद बी बायरां का गीतां का जोड़ दै छा। पण गीत की उत्पत्ती बायर का नमला हरदा अर सुरीला कंट सूं ई हुई छै। ई बात मं शंक्या करबा की गुंजाईश कोइनै।
आजकाल तो बायरां सूँ जादा मरद गीत गावै-बजावै छै। कवि-गीतकार बण'र मंचा पै तरै-तरै का तमासा करै छै। ईसूं वांनै नांव-जस अर धन बी मिल जावै छै। मंचां पै मनोंरजन करबाला गीतां कै अलाबा बी साहित्यिक गीत घमा मांड्या जार्या छै। छुआछुत, दहेज, बाल विवाह, निरक्षरता, अंधबिसवास, नैमिटा'र लोकचेतना जगाबाल गीत बी रचाया ग्या छै। प्रेम, देश भक्ति, मनखचारो, शान्ति, धरम, करम, नीति, जस्या ऊँची किसमां का विषयान पै बी चिंतनशील विदवान रचनाकारां नै गीत लिख्या छै।...पण आज का रचनाकार, कवि, बालगीत माँडबा मं बोत कम रुचि लै छै। या सोचबा की बात छै।
जदकि पुराणा समै मं हाड़ौती धा पै घणा घणा बालगीत रचाया ग्या छ। बालगीत को मतलब यो कोईनै कै' वाँनें बालक ई रचावै। बालक मोट्यारां का गीत माडं सकै छै अर मोट्यार चावै तो बालगीत मांड सकै छै। बालकां का जीवन सूं जुड़ी बातां, वानै सीख देबा अर ज्ञान बधावाली बातां सीधा सरल, सुन्दर तरीका सूँ तुक अर लय मं ढाल'र मांडबो ई बालगीत छै। बालगीत दो, च्यार छै, आठ, दस लैहण्या का ई चोखा रै छै. जादा बडा बालगीत नै बालक रूचि सूँ न्ह पढ़ सकै, न्ह याद कर सकै। ई लेखै दो-दो, च्यार-च्यार लैहण्या का बालगीत ई आछ्या लागै छै।

पैली हाड़ौती अंचल मं एक छोरी( बहण) अपणा छोटा सा भाई नै गोदी मं ले'र खलावै छी तो यूँ गावै छी-
म्हारो भायो-म्हारो भायो रायां को
दूध पीवै दस गायां को
***
आओ री चड्यांओ रंगरोल करां
भाया का पगल्या धूल मं करां
बालकां का माई-बाप दन मं खेत पै काम करबा चाल्या जावै छै। घर नै छोटो सो बालक बैहणा की निगराणी मं छोड़ दै छा। तीजा पैहर तांई बालक उकला जावै छो अर जोर-जोर सूँ रोबा लाग जावै छो तो बैहणा ई तरै की लोरी सुणा'र वूंनै स्वाण दै छी-
सोजा भाया सोजा भाय ाहाबू आवै छै
गाडा की गडार थारी माई आवै छ
आड़ोस-पाड़ोस का छोरा-छोरी जद नहन्या सा बालक नै हांस हांसर खलावै छा तो ई तरै गुणगुणावै छा-
इन्दर राजा पाणी द्यो
पाणी द्यो गुड़धाणी द्यो
पाणी न्ह बरस छो तो दांईदड़ड की छोर्यां गार की मींडकी बणा'र घर-घर मं गीत गाती जावै छी-
बरसगै बरसावणा
बाण्या की छाती कुटावणा

कैह छेक' लुगायां सुभाव सूँ ही जादा बक-बक करै छै। परण्या पाछै सासर मं वूं नै कस्यां छानमून रैहणी चाइजै, ई बात की सिक्सा कुंवारी छोरी नै मून्यो बरत करा'र दी जावै छै। संज्या फूट्यां की छोर्यां मून धारण कर लै छी। झालर बाज्यां की टैम नै कोई दूजी बायर वूँ क मून ई तरै सूँ गीत गा'र छुड़ावै छी-
आमो मोर्यो, नीमू मोर्यो, मोर्या दाड्यू दाख,
राज राणी पाटै बैठ्या, चड़ी चुड़गल्या बासै बैठ्या।
सरी कसी जी कांसै बैठ्या, छोड़ो मून सीताफल लाग्या,
मूनी जी की मून छूटी, मूनी बाबा राम राम।।
हाड़ौती की छोर्यां जी गीतनैसबसूं जादा सरावै छै, वूं सैजां गीत छै। आसोज का ईनिा मं संज्या की टैम नै छोर्यां अपणा घरां की भींत्यान पै गोबर की सैजां बणार वूँको आरत्यो करै छी अर सब मल'र यो गीत गावै छी-
छोटो सो गुड़़कल्यो गुड;कतो जाय
जी मैं म्हांका सैज्याबईा बैठ्या जाय
घाघरो घमकाता जाय
चुड़लो चमकाता जाय
बिन्दी भलकाता जाय

सासरां मं ग्यां पाछै बी बहण का मन मं भाई को परेम कम न्ह हो'र ओरूं बध जावै छै। अस्या ई भाव सैजा गीत मैं मिलै छै-
बीरो नूत जिमाऊँगी री मां
बीरो म्हारो भाई छै री मां
लड़ै भढ़ै भोजाई छै री मां

हाड़ौती का ई सैजा बालगीत मं भोला-भाला बालकां की हाँसी-मसखरी को बरणन अस्या होयो छै-
खोड्‌या रे मसखोड्या नाई
कांई लेबा आयो छै
सैजा लेबा आयो छै
म्हाीर सैजा क' कांई कांई लायो
खुंगाली, तमण्यूं क्यूं न्ह लायो
लायो छो जी लायो छो
तमण्यू बेच तमाखू लायो
आखै गेले पीतो आयो...।

बालपणां मं छोरी को ब्याव करबो आची भात कोइनैं। पण पुराणा जमाना मं दा'जी-बा' की बात पै, लोगदणअया की रेख पै या फैर ओर कारण सूँ ई छोरा छोर्यां नै छोटी सी कीचा ी उमर मं परमा दै छा। नहीनी सी भोली भाली छोरी का मन मं कांई विचार उठछै छै, वै ई गीत मं मिलै छै-
खेलबा री बार सासू गोबर करावै
फाँख जाऊंगही ठोबली, उड़ जाऊँगी म्हारी फीर...।
***
बाबल म्हार रै, बाबल म्हारा रै
थन्है असी बरी क्यूँ लागी
जे काची उमर्यां परणाई...।

राजस्थान का बाल साहितै की बात करां तो खेत मं चड्या उड़ री छै। यानी बाल साहितै का दाणा-कणूका नजर बी न्हा आवै। राजस्थानी बाल साहितै की कोई खैर-खबर, पूछताई कोइनै। बिच्यारा राजस्थानी का बाल साहिताकर जे बी मांडर्या छै। वै खुद ई जाण र्या छै, वके वाँ पै कांई बीत री छै ? कोई चावै ई कोइनै वां की रचनावां नै । राजस्थानी मं तो पत्र-पत्रिकान् को उस्यां ई टोटो छै। तो बी जे कुछ छापै छै, वै बी बाल साहित के तांई दो-च्यार पाना न्ह दै पावै। राजस्थानी भासा साहितैय अकादमी बीकानेर की जागतीजो मं बी बालसाहितै के तांई इस्थान न्ह दीखै।

बाल साहितै को बेसी लेखण तबी को सकै छै। जद वूँ के तांी छपबा की संभावना बधै। सबी राजस्थानी पत्र-पत्रिकावां नै चाइजै के वै आपणै भीतर बाल साहितै नै जरुर बिठावै। बाल साहितै पै छपबावा के तांई जातदां सूं जादा प्रकासण सैयोग अर अनुदान द्यौ जाणो चाइझे। हो सकै तो बाल साहितै की नाली अकादमी अर एक नाली ई बाल पत्रिका चालू की जाणी चाइजै। खै'र अतरी बात तो आपण हाल जोर दे'र कैहबा बी कुण सूँ ? क्यूं कि हाल तो राजस्थानी अपनी भासायी मानीता के लेखे ई जूझ री छै। भेर ब मानीता तो एकदान मलणी ई छै। आपण तो ई का सूना सूना आंगणा मं तरै तरै का माडण्या-चतराम मांडबा मं आलस न्ह करां ई सूं ई राजस्थानी भासा साहितै की आछी दीखैगी।

राजस्थानी का बार साहितै मं गीत, दोहा, कविता, कहाणी, लघुकथा, संवाद, एकांकी, निबंध, संस्मरण लघुउपन्यास आद आद विधावां पै सिरजण करबा की खास जुरत छै।

निरदोसी-मुस्तण्ड
भाइलो बीरू अखबार का कालम मं रोज एक व्यंग्य माँडताँ माँडताँ उगताग्यो छो। ई वास्तै वूँने एक दन एक दूहो माँड्यो। वूं दूहो वीरु ने म्हारो तांई बी पढ़'र सुणायो-"दे दे लात गरीब के राज करो सतखण्ड। दुर्बल ने दोसी कहो निरदोसी मुस्तण्ड।"

दूहो सुण'र म्हारा कानां रूँगटा ऊबा होग्या। कांई स्यानदार दूहा सिरज्यो छै, अगला नै। भाी बीरू के तांई म्हनै मोकली स्याबासी दी। भाइलो बीरू फूल'र फटकड़ी होग्यो। जाणऐ तो वूँनै कोई महाकाव्य माँड द्यो होव। अखबरा का कालम मं भाइला बीरू ने जतना बी व्यंग्य आर्टीकल माँड्या छै, वै सब का सब म्हनै पढ्या छै। वँ व्यंग्य कसै छै सबसूं सीधा सादा, भोला-ढाला, दीन-दुरबल इंसान पे। वँ जाणै छै कै' ई तरै का जीव अतना स्याणा होव' छै क' बी न्ह फटकारै। ई वास्तै यां के सूयाँ गपोड़पो सबसूं जयादा सुरक्षित काम छै।

वीरू बोल्यो भाई साब, आपण खथरा का खिलाड़ी कोइनै। खतरान सूँ बच'र चालबो बी एक कला छै। या कला हर कोई न्ह जाणै। बरसां की साधना पाछै ई म्हूँ ई कला नै सीख पायौ छूँ। जाणता सतां बी मोटा-मोटा अपराध्यां को नाव भूल जाबो भी ई को एक हिस्सो छै। ओर तो ओर अपणी आँख्या के सामै होता अन्याव, अत्यार ने देख'र पूठ फेर लेबो कलात्मक बारीकी छै। स्याफ नट जाबो क' म्हन' तो कोई बी न्ह देख्यो अर कांई बी न्ह जाणू या कैहबो बी पाकी डाढाँ वाला खलाड़ी को ही काम छै। अपणी ज्यान सुरक्षित करबा के तांई सबसूं आसान अर पेटण्ट फोरमूलो छै-न्याव-अन्याव, धरम-अधरम, सांच-झूठ सबक लांपो लगरा छोटी सूं लेर मोटी सगली बातां को सगलो दोस सबसूं दीन-दुर्बल, सीधा सादा भोला-ढाला मिनख पै थोप देबो। गरीब तो चूं चपड़ बी न्ह कर पावै। जालम मोटो मुस्तण्ड खुश हो'र स्याबासी दे, आणंद कैहबा मं न्ह आवै।

ई दुनिया मं झगड़ा झंझट, लूट खसौट, चोरी अन्याव, मारकाट सब जायज छै। आपण क्यूं नाजायज काम करां. सबको अपणो अपणो भाग छै। करमां का दण्ड तो भोगणी ई पड़ै छै। ई वास्तै दूसरा नै बचाबा मं कोई तंत कोईनै। बचाओ तो खुद नै बचाओ। गाँव-गली, चौरापायै, रेल-मोटर मं, दफ्तर मं कठी बी कोई झगड़झट्टा होती दीखै तो सीधा मारबाला मोटा मुस्तण्ड को पकस करो अर सगलो दोस रोबाला, मार खाबाल दीन-दुरबल पै पटक द्यो। फेर देखो थांकी ज्यान कतनी सुरक्षित हो जावेगी। न्याव, धरम अर साँच जूत्यां तलै तड़पै तो तड़पै आपण नै तो आपणी सुरक्षा सूं मतलब छै।

टींटणीपरतीयोगता
परतीयोगता को मतलब छै 'होडमहोड'...होड़महोड को मतलब दाणआ-पुराणआ मनख तो चोखीतरा जाणै छै। पण आजकाल का गिटर-पिटर बोलाबाला नुवादा मोट्यार समझै कोईनै। वांनै देसी सबद समझबा के लेखै अंग्रेजी को सायोर लेणी पड़ै छै। ई वास्तै होडमहोड नै समझबा तांई कंपीटेसन फाइट कैहमो पड़ैगो।

जंदग्यानी में कंपीटेसन फाइट कतनी ई तरै सूं करणी पड़ै छै। बाललपणां मं कुलामलाकड़ी सूँ ले'र दड़ी-डोट अर छीणीपत्ता का खेल स सबसूँ आगै रहबो बी ऊँ जमाना की परतीयोगता छी। माटसाब के तांई चकमो दे'र अस्कूल मं सूँ रूफ चक्कर हो जाबो बोत बड़ो कम्पीटेसन-फाइट छै। जीजी-भाईजी सूँ इस्कूल मं पढबा की कैह'र माल्याँ की बाड़ी मं काँकड्यां तोड़ाब तांी डाँक जाबो बी तगड़ी परतीयोगतिा छै...।

काको चतर्यो च्यार बेटान को बाप बण्याँ पाछै बी कंपीटेसन फाइट करबा का चक्कर सूँ न्ह सुलझ पायो छो। लोक सेवा आयोग का कंपीटेसन फाइट करबो तो वूं का बस की बात कोइनै ई लेखै आसपास गाँँव गर्याल मं होबाली टींगणी-टींगणी सी परतियोगीतावां मं भाग लेबा को मोको वूँ चूकै ई कोईनै छो। वू जाणै छो कै याँ मं जीत को सेवरो वूँ का माथा पै ई बंधैगो...। क्यूँक दादोभाई पोगदो ई हमीसा टींगणी परतीयोगता को निरणायक बणै छै। काका चतर्या की दादाभाई पोगद्या सूँ साँची पटै छै। अब जादा कैबा मं तंत कोनै...।

इसी एक परतीयोगता का बार मं सुणर म्हारा एक खास मित्तर नै म्हसूँ कही (खी)-यार सेल ! अठी एक जोरदार परतीयोगता होरी छै थारा काम की..। तू ई मं जरुर भाग लै। म्हनै मित्तर सूँ पूछी या म्हारै काम की कस्याँ छै ? मित्तर बोल्यो-सेल तू तो देश भर को मान्यो निबन्धकार छै। थारै जस्यो लेखक बठी गोड़ै नीड़ै दीखै कोईनै। ई लेखै ई निबन्ध परतीयोगता मं फैलो पुरस्कार थारै तांई जरुर मिलैगो..। मित्त की बात सुणर म्हूँ मांइनै ई..मुलक्य। म्हनै क्ही भाईला ! तू जाणै कोईनै सगली टींगणी-टींगणी परतीयोगतावां मं दादो पोगदो ई लाडी की भुवा बणै छै। बू आंख्या मीच'र सेवरो काक चतर्या का माथा पै ई बांधै चै। अब बोल म्हनै कुण पूछैगो..? या सुण'र भायलो बोल्यो-टींगणी..होवै चावै ढींगणी।परतीयोगता मं पक्सपात कस्यां हो सकै छै ? या कोई काका चतर्या की बपौती थोड़ी ई छै ?

मित्तर न्ह मान्यो। आखर वूँ को मन राखबा तांई म्हनै भाग लेणी ई पड्यो। खोपड़ी खपा'र जमा जमा'र काईदा को निबन्ध मांड्यो। ई नै म्हूं बड़ा सा अखबार मं खँदा देतो तो म्हारैं तांई आछ्यो म्हनताणओ मल जातो..। पण कुत्ती करम पै लौट री छी, जे वू स्यानदार निबन्ध टींगणी परतीयोगता की घाणी मं पे'ल द्यौ। दादा भाई पोगद्या की समझ सूँ बारै छो वूँ निबन्ध। जस्यां मंच का हुंस्याकड़ा श्रोता साहित्यिक कविता नै न्ह समझ पावै..। ई लेखै टींगणी परतीयोगता का मुख्य निरणायक मौदे सिरी मान पोगदीमल जी की तुरत फुरत निरमऐ खिमता के मुजब म्हारा निबन्ध कठी कोई गिणती कोईनै छी..। जीत को सेवरो काक चतर्या का माथा पै ई बँध्यो। पैलो पुरस्कार वूँ कै तांई मिल्यो।

म्हारो मित्तर ऊँडा सोच मं पड़ग्यो। वू सोचबा लागयो क' जीं मनख का निबन्ध लेख राष्ट्रीय इस्तर की साहित्यिक पत्रिकावआं अर पोथ्याँ मं छाप्या अर सराया जावै छै, जीं कै तांई राष्ट्रीय अस्तर पै चौखा लेखण सारु सम्मान मिलै छै..ऊँ तो अठी नांव-नसाण ई कोईनै..आखर क्यूँ ?
अब म्हारा मित्तर की नजर मं टींगणी परतीयोगता साँच्याई 'टींगणी' हो'र रै'गी छी।


हाड़ौती में नवसाक्षर साहित्यसृजन कार्यशाला
राजस्थान का करबीन पचास लाख नव साक्सर लोगां की शिक्सा नैं सतत रूप सूँ बणया राखबा बेी प्रदेश की नाली बोल्यां मंनवसाक्सार साहित्य राज्य संदर्भ केन्द्र की ओर सूँ त्यार करायो जार्यो छै। ई वास्ते मेवाड, मारवाड़, हाड़ौती जस्या अंचलां मं कार्यशाला को आयोजन भी कर्यो जार्यो छै।

ई कडी मं देश की जानी मानी शिक्सा नगरी कोटा मं दिनांक 28 मार्च सूँ 30 मार्च 2005 तक हाड़ौती नवसाक्सर साहित्य सिरजण वास्ते हाड़ौती अंचल का जान्या मान्या रचनाकारां की एक कार्याशाला राखी गी। जी का मुख्य संयोजक सिरी दिनेश पुरोहित छा।

कोटा विज्ञान नगर का जिला प्रौढ़ शिक्षण समिति भवन मं तड़कै आठ नौ बज्यां सूँ ई चैहल-पैहल सरु होगी छी। चुनिंदा चोटी का रचनाकार समिति भवन मं भेला होया। वरिष्ठ शिक्सा अधिकार अर कार्यशाला का खास संयोजन सिरी दिनेश जी पुरोहित सूँ मिल'र पंजीयन करायो।

करीबन दस बज्या कार्यक्रम की सरुवात मंच का लोकप्रिय कवि सिरी प्रेमशास्त्री का मंगल गान सूँ होई। जिला प्रौढ़ शिक्सण समिति का परियोजना निदेशक सिरी आर.पी. गुप्ता नै कार्यशाला का बारा मं विस्तार सूँ जाणकारी दी। अर आबाला मैहमानां को स्वागत सत्कार कर्यो।
 
कोटा, बूँदी, बारां अर झालावाड़ सूँ चुण्या हुआ अर छँट्या जे संभागी रचनाकार पधार्या वां मै आचार्य ब्रजमोहन मधुर, घनश्याम लाड़ला, भगवती प्रसाद गौतम, बद्रीलाल पंचोली, सी.एल. साँखला, गीता जहाजपुर, डा. लीला मोदी, रामेश्वर शर्मा, प्रेम शास्त्री, अतुल कनक, विजय जोशी, देशबंधु दाधीच, शिवचरण सेन, सिवा प्रमुख छै।
 
खाश पावणा डा दयाकृष्ण जी विज नै खी क' भाषा नै संस्कृति सूँ जुड़ी रैबो चाहिजै। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता हाड़ौती का जाण्या मान्‌या साहित्यकार भासा विसेग्य डा. कन्हैयालाल शर्मा नै करी। आपनै भासण मं खी क' आज बैग्यानिक विचारां सूं साहित्य नै जोड़बो जरुरी छै। ई सत्‌र को संचालन जन शिक्षण संस्थान का निदेशक राजीव मल्हौत्रा नै कर्यो। उद्घाटन पाछै परिचरचा होई। ई मं साहित्यकार गोपाल प्रसाद मुद्गल, बी.एल. पंचोली, बृजमोहन मधुर, भगवती प्रसाद गौमत आद नै नवसाक्सर साहित्य पै अपणा विचार परगट कर्या। सम्भागी रचनाकारां सूँ वाँ की रुचि का विषय अर विधावां जाण'र वां पै रचना त्यार करबा की बात श्री गोपाल प्रसाद मुद्गल अर डा. दिनेश पुरोहित नैं खी।

पैहलों सत्र पूरो होयो तो सारा संभागी रचानाकार अर मैहमाना नै भोजनशाला में जार रोटी जीमी।
भोजन पाणी कर्यां कै थोड़ी देर पाछै सबी रचनाकार रचनावां त्यार करबा मं जुटग्या पहल्यां पैल सबी जोश खरोस म आर मांडबा लाग्या। पण, घणी देर पाछै तांी जद कांई न्ह मांड पाया तो मंच का लोकप्रिय कवि प्रेम शस्त्री नै बी कैहणो पड्यो क' यो तो घणो करड़ो काम छै। कविता नैं बना गायां प्रस्तुत करबा की बात कही। रचना मं पठनीयता अर संप्रेषणता नवसाक्सरां का साहित्य में बोत जरुरी छै। गार सुणाबो बलकुल दूसरी बात छै।

कोटा कै बाहर सूं आया रचनाकारां कै तांई रात मं ठैहरबा की व्यवस्था करी गी छी। जैपर सूँ पधार्या डा. दिनेश पुरोहित जी बी वाँ कै साथ ठैहर्या।

दूसरे दन चाय-नास्ता कै पाछै सबी रचनाकार सभागार मं आ बैठ्या छा। संयोजक डा. दिनेश पुरोहित नै सबी सूँ अपणी रचनावां पढ'र सुणाबा की बात खी। एक एक कर सबी अपणी अपणी रचनावां नैं सुणाबा लाग्या। ई बीच अतुल कनक बी आ पूग्या। कनक जी टीका टिप्पणी करबा मं घणा हुंस्यार लागर्या छा। उस्या विजय जोशी, रामेश्वर शर्मा, ब्र.मो. मुधर, तारादत्त पंत, बी. एल. पंचोली, भगवती प्रसाद गौतम, सी.एल. साँखला घनश्याम लाडला, समेत सगला ई रचनाकार रचनावां पै अपणी अपणी बात कहर्या छा। डा. लीला मोदी ज्यादा ही खिलखिला'र हाँसती दीखी। शाइद यो वाँको सुभाव ई छो। डा. मोदी नैं हाड़ौती भासा का बार मं खी कै या ई तरै सूँलिखी जाणी चाइजैजीं सूँ गाँवड़ैल (देहाती) न्ह लागै। ई बात को एक दो रचनाकारां नै तो समर्थन बी कर दयो पण सी.एल. साँकला नैं खी क' हाड़़ौती तो छे ई गांव की भासा, ई लेखै गांव को प्रभाव तो ई मंं होणो ई चाहिजै। शिव चरण सेन शिवा की या बात सबी रचनाकारां नै सिरा सूँ खरिज कर दी क', शादी ब्याउ अपणी ज्यात मं करणो चाहिजै...। यो वांकी कहाण ीको सार छो।

टी. वी. पत्रिका की ओर सूँ आया रिपोर्टर नैं सबी का फोटु खीच्या। अर सी.एल. साँखला की रचना तीन सहेल्यां (संवाद) की वीडियो ग्राफिंग करी।
 
भोजन कै पाछै रनाचाकारां की त्यार होई पांडुलिप्यां को फिल्ड टेस्ट कर्यो। नव साक्सर महिलावां का बीच मं लेखक रचनाकरां नै अपनी रचनावां पढऽर सुंणाई। कार्यशाला संजोयजक डॉ. दिनेश पुरोहित जी नै महिलावां सूँ पढ़ी-सुनी रचनावां पै वां को विचार जाण्यां। एक-दो लुंगायां नो तो खूब आछी तरै सूँ अपणी बात खी। जीं सूँ पतो चाल्यो रचनावां मं आई बात वै आछी तरै सूँ समझघी छी।

जनशिक्षण संस्थान का निदेशक राजीव मल्होत्रा जी सबी संभागी रचनाकारां नै आपणा संस्थान मं लेग्या। व्हाँ रचनाकारां नै जनशिक्षण संस्थान अर वूं की गतिविध्यान को अवलोकन कर्यो। मेजमान जी नै पावणान के तांई चाई-बिस्कुट परोस्या।

कार्यशाला कै तीसरे दन तड़के रोजीनां की तरै चाई नास्तो लेर दस बजया की सबी रचनाकार सभागार मं पूग्या। ई दन डॉ. शाति भारद्वाज राकेश जी जे हाड़ौती अर हिन्दी का जाण्यां मान्या साहित्यकार छै कार्यशाला मं आया। वां न सगली रचनावां एक-एक कर क देखी-परखी। भाषाई दोस दूर कराया।
चाई पाणी कै पाछै 'समापन सत्र' सरु होयो। जिका खास पावणां जिला साक्सरता अर सतत् शिक्,ा अधिकारी सिरी अब्दुल अंसारी अर अध्यक्ष प्रोौढ़ शिक्सण समिति का सचिव सिरि अरविन्द कुमार गोयल छा। ी औसर पै डॉ. शान्ति भारद्वाज नै खी कै लोगां की बोली मं लिखबो टेडो काम जरुर छै। तो बी लोक नै ध्यान मं राखबो ई चाहिजै सतत शिक्सा अधिकारी सिरी अब्दुल अंसारी जी नै खी कै यो साहित्य सिरजण सुखद अर उपयोगी साबित होवैगो। अध्यक्षतचा कर र्या सिरि अरविन्द कुमार जी गोयल नै बी सब का सैयोग सूँ रची रचनावां अपणा लक्ष्य नै पूरो करैगी, यो बिसवास जतायो। सिरी तारा दत्त पंत जी नै बी अपणा विचार परगट कर्या। घनश्याम लाडला की खुली बैबाक बातां सूँ सबी संभागी घणा मुलक्या।

दूसरे दिन की रात एक स्यानदार काव्यगोष्ठी की करी गी। जी मैं सिरी गोपाल प्रसाद मुद्गल, बी.एल. पंचोली, भगवती प्रसाद गौत्तम, अरविन्द सोरल, घनश्याम लाडला, सी.ेल. साँखला, गीता जाजपुरा, अतुल कनक, रामेशवर शर्मा, चांद शेरी, विजय जोशी, गोरस प्रचण्ड, रामनारायण हलधर, बालकृष्ण निर्मोही, देशबन्धु दाधीच, शिव चरण सेन शिवा, आद-आद रचनाकारां नै काव्यपाठ कर्यों। समापन का आखिरी पलां में कार्यशाला संयोजक डॉ. दिनेश जी पुरोहित नै भावपूरण शब्दां मं सभी सहभागी रचनाकारां को आभार प्रगट कर्यो।

साहित्यबिभागमंघुसबाकीतरकीब
एक भाी साब सूट बूट पैहरलस्या, बेगा बेगा पांव पटकता, हांपता जार्या। वाँ को उतावलोपण देख'र म्हारा मन मं वां सूं बात करबा की हूँस जागी। पण झे न्हं चाली। किस्मत सूं वूँ टैम भाई साब ठोकर खा'र ढुकल्यां हाणी नीचै गर पड्या। वाँ की दशा देख'र म्हार हिवड़ा का भाव सबद बण मूँडा सूँ फूट पड्या-"भाई साब ! अतनो उतावला क्यूं होर्या छो? कोई खाश बात छै क ?"

भाी साब म्हारी आड़ी झाक्या। मन ई मन मं म्हारै बेई वां नै जाणै कांई सोची। पण म्हारी आँख्या मं हाँसी-मजाक के बज्याई सानभूति देख'र वै सैहज होग्या। लम्बो साँस खीच'र बोल्या-अरै भाई ! कांई पूछै छै ? महूँ जी डिपाटमन्ट को आदमी छूँ वू डिपाटम्नट ई संसार मं आँख्या सूँ न्ह दीखै। भाी साब की बात सुण'र म्हूं अचम्भा मं पड़ग्यो। मन ई मन मं सोची कै यो कस्यो अंतरयामी मनख छै, जे आँख्यां सूँ न्ह दीखबाला 'फिल्ड' मं नौकरी करै छै। पूरी जाणकारी लेबा तांई पूछ ली-भाी सांब थां अस्या कस्या विभाग मं नौकरी करो छो जे आंख्या सूं दीखै ई कोइनै ? नौकरी की बात पूछता ई भाई साब के माथा पै पसीना को झरण फूट्यायो। मंदा सुर मं धीरां सेक बोल्या-भाई! नौकरी म्हारा भाग मं कोइनै। सरकारी खजाना मं म्हांकै वास्तै ई टोटो छै। पढ्यो लख्यो छूँ। काम-धन्धो कांई बी न्ह करूं..। हाँ, पैली सोला बरसां तांई पोथ्यां पढी छी। अब सोला बरसाँ सूँ पोथ्यां माँडर्यो छूँ। साहित्य लोक सूँ जुड्यो आदमी छूँ। भाी साब नै अपणी हैसती बता दी। साहित्य लोक की बात सुण'र म्हारा सुस्त पड्या कान बेगा सके ऊबा होग्या। क्यूँकि बाँचबा अर माँडबा की बेमारी की जीवाणु म्हारा खून मं बी फैल र्या छा। जद म्हनै बी साहित्य सूँ जुड्यो होबा की बात भाी साब के तांई बताई तो वाँनैे उतनी खुशी होई, जतनी खुशी एक रांडबैर नै दूसरी रांडबैर मल्यां सूँ होवै छै। भाई साब म्हनै चाई की दूकान पै लेग्या धूला मं भँडी पेन्ट झटकार'र वै कुड़सी पै बैठग्या। म्हूं बी जा बैठ्यो।

काच का गलासां मं पींदा सूँ जरा सेक ऊपर तांई भरी बलबलती चाई का सुर्डका लेबा लागग्या म्हां. गाँवां की चाई मं देशीपणा की मौलिक गंध होवै छै। अंगरेजां की चाई सूं बलकुल नाली। चाई तो नांव छै, साँची कैवूँ तो परमाण जमाना को ओटााणो ई आज का यजुग की चाई छ। ख'र...।

"सोला बरसां की लाँबी सिरजण जातरा पाछै तो घमओ नांव जस अर धन कमाल्यो होवैगो आपनै?" म्हनै पूछ ली।
"खाक...।" ज्वाब मं अतनी सी खै'र छाना होग्‌ा भाई साब।
"क्यूँ? म्हनै कोई गलत तो न्हं खै दी ?"

"असी बात कोई नै भाई ! बात तो या छै कै साहितैकार अपणै आपनै महामानव होबा को ढोल पीटै छै। राग-द्वेष, लूट-खसोट, खींचाताणी, स्वारथरपमओ, भेदभाव, करोध, घरणा, हिंसा, अधरमं सूँ दूरा रैहबा की दुनिया नै सीख देता फरै छै। प्रेम की सल्ला देताँ कदी न थकै..जद के ये ई साहितैकार पैचाण पाबा अर ईस्थान बणाबा का लफड़ मं रातदन उलझ्या रै छै। सीनेर रचनाकार जूनेर रचनाकारां का पत्ता काट'र व दुख-दरद पूगाबा मं आणंद मैसूस करै छै। बर्याबर का लेखक दूसरा की टांग खींच'र खुद लाट साब बणबा की कोशिशां करै छै। व्यंगकार अर आलोचक दुष्ट लोगां सूँ तो डरपै छे अर अपणी ई बिरादरी का रचनाकारं पै कादौ उछालै छै। अस्या खांचमताण करबाला, स्वारथी अर घरणा नै पालबाला, गंडकान की नांई पूँछ हलाबा मं परफेक्ट रचनाकार ई आज का समै मं नांव, जस अर अणापशणाप धन लूटबां मं काययाब होवै छै। असी काल आपण मं कोइनै।"
भाी साब की सूखी अर खरी खरी बातां सुण'र म्हारा बी मन की कल्यां खिलगी। आखर म्हू बी तो खुद नै एक उपेक्षित रचनाकार मानै छो। पण, म्हनै म्हारा घाव न्हं बता'र भाी साब के तांई धीरज बंधाबा ताई खीं भाई साब! साहित का डिपार्टमेन्ट मं तो थां हालतांई उल ई न्हं पाया। ई मं उलबा के तांई आरट चाइजै।
"हाँ ? कसी आरट?"

"मतलब कला ! साहित्य विभाग की पोल्यां के आगै गण्डक बैठ्या रै छै। जस्या बडा साब का बंगला के आगे बिलायती डोग बंध्या होवै छै। ये गण्डक थाने जद ई भीतर उलबा देगा, जद थां बी गण्डक कीनांई पूंछ हलाबो सीख जावैगा। न्हं तो बारै ई भड़भटा खाणी पडैगी।"
"वा भया ! तू तो घणी तरकीबां जाणै छै रै। म्हनै चोखां समझा कै म्हूँ साहित्य विभाग मं कस्या उलूँ"
भाई साब नै लोडक्या भाी की नांई म्हसूं खी भलाई को काम करबा मं कांई की देर ?

"देखो भाई साब! आपण तो ठैहर्या गाँवडेल रचनाकार। जद कि साहित्य विभाग की बड़ी बड़़ी कुडस्यां पै शैहर का लोग कबजो जमाया छै। शैहर का लोग गाँवड़ैल लोगां कै रैण सैण, बोलचाल अर चाल चलण सूं चिढ़ै छै।"
वै वाँनै असभ्य मानै छै। ई वास्तै साहित्य मं घुसबा सूं रोकै छै।
"या बात छै तो आपण कांई करां भाई"
"एक फारमलूो छै म्हारै गोडै।" म्है बतांई।
"तो म्हनै बी बता दै म्हारा भाई...। थारो गुण जस न्हं भूलूंगो।"
भाई साब रीराया। वांनै दुकान हाला के तांई सेवड्या लाबा को ओडर कर द्यौ। पण म्हूँ नटग्यो। दुखिया का बाल तोड़बो चोख ीबात कोईनै छी। म्हनै भाी साब सूं वां को नांव पूछ्यो। वांनै बतायो छोगालाल म्हूं समझग्यो के वांनै साहित लोक मं घुसबासूं रोक बालो फैलो रोड़ो वांको नांव ई छ। म्हनै वांकै तांई सीख दी के था ई नांव के बज्जाई शोर्ट मं सी.एल लिखबो करो। ई सूं सम्पादन की खोपड़ी पै असर पड़ैगो। या सुणतांई भाी साब बोल्या-पण भाई ! ई मं तो अंगरेजी की सडंयान फूटै छै...।

म्हनै भाई साब समझाया-"कुण माई को लाल छे जे सी.एल. मं अंगरेजी पुट बतावै छै। े तीन अगसर हिन्दी का छै। ये अंगरेजी का लेटर कोइनै। जद कोई का नांवजैकी, मैकी, चैकी, अंटी, बंटी, मंटी..हो सकै छै तो सीएल क्यूं न हो सकै ? अंगेरजी लत्ता के भीतर सुदेशी डील होवै तो कसी बरी बात छै?" या बात भाई साब की खोपड़ी मं घुसी। वै छोगालाल के बज्जाई सी एल लिखबा तांई त्यार होग्या।

म्हनै आगै की तरकीब बताई-"अपणआ पता ठिकाणा मं थां गांव पोस्ट लिखबो सरु कर द्यो। कोई कोलोनी का नाम माडंबो सरु करो। जस्या इन्द्रपुरी, उर्वशी कोलोनी आद आद हो सकै तो गेला को नांव बी चोखोसेक सोच'र मांडो। जस्यो सुभद्र मारग..। गाँवल का रचनाकार नै अपणा घर को बढिया नांव अर हाउस नम्बर मांडबो बी न्ह भूलणी चाइजे। जस्यां 2-च, 25-कुन्दनवन। ई तरै सूं आप अपणो नांव पतो लिखेगा तो सम्पदाक आपकी रचा नै रुर छापैगो। वूँ की खोपड़ी चकरा च्यागी। वू सोचैगो के सीएल लोग छै के लुगाई? क्यूँकि सी एल को एक अरथ छोगालाल होवै छै तो दूसोर चंद्रलता। अर लुगाई को नंाव आछ्या आछ्या मरद समपादकां नै पगतल्यां की धूल चाटबा तांी मजबूर कर दै छै। दूसरी बात हाउस नम्बर अर कोलोनी को नांव माडंबा सूँ रचनाकार गाँवडैल न्हँ लाग कै शहर को सभ्य मनख बागबा लाग जावै छै। तोलुगाई..अर वा भी शहर की अपटुडेट..जरुर भाईलो समपादक रचना के तांई हरी झण्डी बता देगो।"

म्हारी बताई या तरकीब भाी साब के चोखी फिट बैठगी। यो नुस्खो वां नै आजमायो तो पैली बार मं ई काम बणग्यो। थोडा ई दनां मंं भाी साब को नांव साहित्य लोक मं चमकग्यो। वां की पोथ्यां छपबा लागगी। हजारु रुप्या का इनाम वांनै मिलबा लागग्या। पण दुख की बात या छै के भाई साब म्हारा बताया फारमूला का बल पै ई साहित्य विभाग मं घुस'र ईस्थान बणआ पाया छा। तो बी वै आज म्हनै पछाणै ई कोइनै। वां की आँख्या को जनरियो ई बदलग्यो ! सांच्चाई फटकड़ी फूल्या पाछै उनती वजनदार न्हं रै वै।
म्हूँ पछताऊ छूं कै काश म्हनै भाइ साब के तांई साहित्य विभाग मं घुसबा को गेलो न्हं बतायो हो तो..।

फांखबोसीखो
इस्कूल मं जा'र पोथी पढ़बो सीख्यां पाछै तरै तरै की बतां पढ़बा मं आबा लागी। सुणबा मं तो पैली सूं ई आवै छी। पढञी-सुणी बातानै लिपिबद्ध करबा के तांई म्हारो मन वां दिनां सूं ई ताफढ़ा करबा लागग्यो छो। तुकां बी जोडी, दो एक पैरोड्याँ बी ढाली अर छोटा छोटा लेख, कहाण्यां मांडबां के तांई कलम रगड़बा लाग्यो..। हाड़ौती (राजस्थान) तो सुहावण ीलागै छी, हिन्दी सूँ बी म्हनै परायापण को भाव न्ह राख्यो।

म्हारै तांई काची ऊमर मं लिखतो-मांडतो देखर मिल बाला कैहता- भया ! तूं तो कवि छै। कवि सम्मेलणां मं जाबै कर। वाँ दना म्हूं जाणऐ ई कोइनै छो के कवि सम्मेलण होवै कांई छै ? म्हारा शुभ चिंतकां का कैहबां सूं म्हौ मन मं कवि सम्मेलण देखबा की हूंस जाग्याई। पण, वां दनां सम्मेलण म्हरौ गाँव के गोड़े-नीड़ै कत्तेतई न्ह होवै छां। बरसां तांई कवि सम्मेलण देखबा की हूँस मन मं ई पलती री। बड़ी मुस्कल सूं बरसां पाछै मौको मिल्यो। म्हनै तो कत्त ई बिसवास न्ह होयो के कवि सम्मलण यो ई छै। वाँ तो भरपूर फाँकम फाँख चाल री छी। अतनाक मं ई म्हारो एक मिलबालो छानेसेक जा'र संचालक जी सूँ जा मिल्यो अर वां का कागद मं म्हारो नांव बी जुड़ा द्यो।..अचाणक, संचालक जी नै माइक पै म्हारो नाँव पुकार्यो तो म्हूँ धूज ग्यो। घमासण फाँकमफाँक के माइनै म्हूँ कस्या-काँई करुँगाो...? म्हनै तो फाँकबा का लक्कण बलकुल बी कोइनै छा। पण, म्हारा मिलबाला नै म्हार काँधा पे हाथ मैल'र बिसवास बँधा द्यौ के जा बेगोसेक चढजा। आखर म्हूँ

मंच पै जा चढ्यो। फाँकमफाँकी सूँ राजी मनचाल्या मोट्यार स्रोता ई आस मं छा के म्हऊं बी कोई धमाकादार भींत-भडाको फाँकूँगो..। पण, एक मिन्ट मं ही वांकी आसा पै पाणी फग्यो। जद म्हनै थर-थराती धीमी सी आवाज मं एक गंभीर विसै पे कविता पढ़बो सरु करी। जरा सी देर मं हुल्लड़ माच गी उस्याँ सैकडऊं मनख्याँ की भीड़ मं हुल्लड मचा वाला तो गणती का बीसेक मनचाल्या छोकरा ई छा। पण कैवै छे के कबि सम्मेलणां का आँगणान् मं ये बीस बच्चीस छोकरा ई मजीस्टेट पावर राखा छै। ये चावै जीं की पाग खींच लै अर चावै जीं की खोपड़ी पै तुर्रो बाँध दै। ई वास्तै बिच्चार ाकबियाँ नै बी राजी राजीय आँ की आंगली का इसारा पै नाचणी पड़ै छै। लुगायाँ की राग काड़'र गाणो गाणी पड़ै छै। तरै तरै का नाज नखरा दिखा कै रात रात भर वाँ मनचचाल्या मोट्याराँ को मनोरंजन करणी ई पडै छै..। नोट ई बात का ई मलै छै कबिया के ताँई।

बिसेस चन्ता की बात तो या छै के हुल्लड़ड मचा बाला गणती का छोकरान् की फरमाइसां तो पूरी हो जावै छै, पम छानमून बैठ्या रैबा हाला सैंकडू मनख्यां की चावन्या तो को बलकुल बी ध्यान न्ह राख्यो जावै या तो प्रजातंत्र की खुल्ली मजाक छै। खैर, च्यार लेण्याँ पढ'र मूँ तो मंच सूँ कूद्यायो।

दिनान् तांई कबि सम्मेलम सूं दूरै ई र्यो। बरसां पाछै एक मोको ओर मिल्यो मंच पै सूं कबिता पाठ करबा छो। पण वाह रे मंच अर मंच का सौकडीा ! के जिणनै दूजी दभा बी म्हारा डीलडा पै धूल उलालबा मं कोई कसर न्ह राखी। आकर कोई बी होवै, जे फाँकबो न्ह जाणै या सिस्टाचार बस फांकबो न्ह चावै वूँ नै मंच का सौकीड़ा टाँग खींच'र तलै फाँकबो अपणो परम करत्त्ब्यै समझै छै। यो रहस्य म्हारी समझ सूँ परै छो वाँ दिनां। म्हूँ घरनै बैठ'र बिचार करतो के पत्र-पत्रिकावां मं तो म्हारी कविता अर लेखण के ताँई बर्योबर सफलता अर वाही वाही मिलती जारी छै, तो फेर मंच का सौकीड़ा क्यूं न्ह ल्गै उतार पावै म्हारी कविता नै ? साइद वां का दिमाग की अण्डरस्टेंडिंग म्हारी कविता का हिसाब..सूँ बलकुल गई बीती हावै छै।


या सोच'र साब ! महनै वांका इस्तर की गईबीत कविता जोड़बा की कोशिशां बी करी जे दन्नाटा सूं मंच पै चाल सकै। गंभीर सब्जेक्ट पै गीत माँड'र तरै तरै की राग रागण्यां भरबा लाग्यो।जद के तरै तरै की राग रागण्याँ काढ'र गीत गा देबो म्हारा आगला बड़ा के बी बस की बात कोइनै छी।
एक लम्बा अन्तराल तांई कबि सम्मेलणां सूँ कोसा दूर रैह के म्हूँ रनचावां कर्यो र्यो। ई दौरान आपणा गाँव मं ई एक छोटो मोटो कबि सम्मेलण करबा की बात म्हारा दिमाग मं कौंधी। अर बेगो सो'क रोप बी द्यो। ई मं अपमई जाण पैंछाण का वै कवि बुलाया जे गपौड़ा बी न्ह ताणै छा अर रुप्या -पी'शा के लेखै मूँडो बी न्ह फाडै छा।..गैस को उजालो, लकड़ी का तख्ता को इस्टेज, सामनै बैठ्या एक सौ श्रोतागण। उस्यां तो यो एक मिनी कवि सम्मेलण कह्यो जा सके छै पण ई मं हाड़ौती का नामी-गिरामी कबि गण बी भेला होया छा। याँ के बीच जद म्हनै कविता पढ़ी तो सारा श्रोतागमआं ने बड़ा ध्यान सूं सुणी। म्हारा गांव का विवेकवान अर समझदार श्रोतान की सारी कब्याँ नै तारीफ करी। बना फाँकम फाँक हाला ई साफ सुथरा किव सम्मेलण नै म्हारो हौंसलो बधायो। मन मं कविता पाठ को ेक बिसवास जमबा लाग्यो।

ई बिसवास भरोसै ई म्हूँ एक बार फेर बी बड़ा (फाँकम फाँकहाला) कबि सम्मेलण मं जा सामल होयों सोची छी के अब तो म्हूँ बी मंच पै जम सकूँगो। अर दिन उग्यां तांई म्हूँ बी एक फैमस कवि बण जाऊँगो। म्हनै कांई पतो छो क आज बी म्हारी कविता का पेट मं चक्कू भूँक द्यौ जावैगो..। आखर, चक्कर खा'र म्हूँ धड़ाम सूं तलै आ पड्यो।..अब तो म्हनै फाँकम फाँक हाला कवि मचाँ की आडी झाँकबो ई बन्द कर द्यौ। कविता सुणाबो तो दूरै की बात छै, सुणबा की जुरत बी न्ह समझी।

मतलब यो बी कोइनै के म्हनै कविता सूँ रिस्तो ई तोड़ ल्यो होवै। कविता को रचाव तो म्हारा खून मं रमै छै। म्हूँ कविता की कठिण साधना मं बर्योबर लाग्यो र्यौ। बरस बीतग्या। आंगली-अंोठा के बीच आंटण पड़ग्यां डाडी मूँछ्याँ मं सफेदी दौड़बा लागगी..। अब तो म्हारी कविता जीं साहित्यिक पत्रिका का आंगणा मं जा पूगै छै, वूँ कै तांई इस्थान अर सम्मान आराम सूँ मलि ई जावै चै। पण म्हारा मन मं एक बात आज बी सालै छै के कवि सम्मलेण नामधारी मंच जीवन भर आठ दसेक तुकबन्दयाँ ने बजाबला कवि ? (या गायक कलाकार) के माथै फेम अर सीनेर कवि कोबां तो कुर्रो बाँध दै छै, जद कि राजस्थानी हिन्दी की करीबन ढाई सौ कवितावाँ रचायाँ पाछै बी नूयो-नुवोदा नारक्यो समझ'र टुरका देबो चावै छै।

मन की गुत्थी सुलझावा का मकसद सूंँ एक दन म्हूं एक सीनेर अर फेमस कवि सूँ बात करबा का मूंड मं निकल पड्यो। किस्मत सूँ अससी ई एक ऊँची पदवी होला कवि मोटर-इस्टेण्ड पै कदमताल करतयो हुयौ मिलग्यो। म्नहै मुलक'र वूँ सूँ नमस्कार कर्यो। प्हैली तो ऊं नै म्हारै तांई न्ह पछाणबा को अभिनयै कर्यो। पण, जद म्हनै म्हारो नाव बतायो तो वू एक साथ अरे हाँ, अरे वाह! करबा लागग्यो। म्हारी बी उन्है सम्हाल ली। बोल्यो-थन्है तो अब कवि सम्मेलण सूँ ही मूँडो मोड़ल्यो। असी बी कांई नाराजी छै?
मन की बात सुणांबा सूँ प्हैली म्हूं वूँ नै नीडै का एक टी-इस्टाल पै लेग्यो। मूड्यां पै बैठ'र चाय का सुर्ड़का लेता हुया दोनूं बतलाबा लाग्या। वूं बोल्यो-म्हूँ थनै मंच पे जमबा को एक गुपत फारमूलो बताऊँ छूं। म्हूँ तो सावल खड़ा कर'र सिकायत दरज कराबो चावै छो। पण, वू का मूँडा सूँ गुपत फारमूला की बात सुण'र छानो होग्यो। वू बताबा लाग्यो-भाई ! कवि सम्मेलण तो नावं छै। मोटी बात कुंवारा की रात राजी खुशी मं कट जाबा को जतन करणो छै।..तू जद बी मंच पै चढ़ै तो कबिता-फबिता की बात दिमाग मँ सूँ काढ़'र फाँगा ठोकबो सरु कर दै बै कर। फांगो ई कवि नै मंच पै जमाबा को मूल मंत्र छै। अर जे जम सकै छै वै ई मंचीय कवि कैहलाबा को गोरव हासल कर सकै छै। ई लेखे कवि का रूप मं फैमस होबो चावै तो बेहिचक फाँकबो सीख..।

कवि-देवता का इमरत बचन सुण'र म्हारो हिरदौ गदगद होग्यो। आज दन तांई म्हारा माथा पै कोई गोडफादर नै हाथ न्ह मैल्यो छो। अर न्ह म्हनै ी की जुरत समझी छी। आज प्हैली दफा एक फेमस अर सीनेर बोस को आसीरवाद पा'र म्हूँ साँच्चाई गदगद छो। कवि सम्मेलणा की फाँकमफाँक नै ले'र अर ेक बार फेर म्हारो मन खदबदाबो लागग्यो छो। आज दो बातां म्हारा दिमाग मं रै-रै'र कौंधे छै। एक तो या की कवि सम्मेेलणां मं फैसम होबा की हूँस पालूँ तो कविता सूँ त्यागपत्र दे'र फाँकमफाँक नै गलै लगा ल्यूँ? दूजी जाय के कविता का आँगणा मं बिकसित छवि नै बचायां राखबा के लेखे फाँकमफाँक हाला मंच अर वां का सौकीड़ा नै दूर सूँ ई सात सलाम कर ल्यूँ...?

नीचोदखाबाकीखुरापात
खुरापात कांई सूं कैवै छै ? या बात म्हूं चोखां सेक न्ह बता सकूँ। छैड़छाड़, वोटंग, धोखाबाजी, चुगली, खींचताण, चालबाजी आद आद अरथां का म्लायं जुल्या गड्‌ड गड्ड रंग को नांव ई साइद खुरापात हो सकै छै। या याँ सूँ बलकुल नालो अरथ होवे तो म्हारी कोई जिम्मेवारी कोइनै। पण एक साहिताकर होर बी म्हूँ एक सबद को अरथ बताबा की ज्वाबदारी न्हं ले सकूं तो म्हारी आतमा म्हनै ई धिक्करबा लागै छै। ई सूं उबरबा के लेखे खुरापात को सांचो अरथ जाणबा तांी आकर म्हूं दादा भाी फूंदीलाल के गोडै जा पूग्यो।
म्हारी बात सुण'र दादो फूंदीलाल पैली तो घणो हांस्यो। ऊं की भूडी हांसी के सामनै हिजडान की हांसी बी फीकी लाग री छी। दादो फूंदीलाल दूसरा नै नीचो दखाबा की गरज सूँ हांसी नै बी एक हथयार का रूप में काम लै छो। कोई अणग्यानता परकट करै तो दादो फूँदीलाल पूम घण्टा की हड़बड़ाती हांसी हांस्या बना न्ह रै छो। ऊँ दन जद म्हारै ऊपर ई ऊनै भूँडी हाँसी को हथयार फाँक्यो तो म्हूं घायल होबना बना न्ह र्यो। पण कांी करतो। खुरापात को अरथ जाण'र ग्यान तो फूँदीलाल सूँ ई लैणो छो। सोची के साइद गुरु की एक क्वालिटी असी बी होवै छै। म्हाली अणग्यानता पै दादा फूँदीलाल नै घणी देर तांई हर्ड़-हर्ड़ हांसतो देख'र म्हनै लागी कै जाणै तो ऊ मेघनाद को बाप होवै। ज्ञान को अतर घमण्ड तो पाणिनी बी न्हं करै छो। आखरकार, ई धरती को मनख पूरणबरम तो हो न्ह सकै! कसी न कसी तरै की अणग्यानता सबी मनख्या मं जरुर मलै छै।

म्हारै तांी पुरी तरै सूँ नीचोद दखाया पाछै फूँदीलाल नै ग्यान को परसाद देबा की सोची। ऊ बोल्यो के खुरापात को मतलब आणंद होवै छै। सुण'र म्हूं अचरच मं डूबग्यो। आणंद अर खुरापात पर्याई बाची कस्यां हो सकै छै ? फूँदीलाल नै समझायो के खुरापात करबा सूँ ई आणंद की उतपति होवै छै। बना खुरापात कै आणंद न्ह आवै। अर खुरापात की उतपति दूसरा नै नीचो दखाबा सूँ ई होवै छै। ई लेखे दूसरा नै नीचो ददखाबा सू भी आणंद की प्राप्ति होवै छै। आमंद बी

कतनी तरै का होवै छै। पटेलायां करबा को आणंद, कपोड़ा ताणबा को आणंद, नेतागिरी को आणंद, रिसवत अर घोटाल को आणंद, कबि सम्मेलणां मं चुटकला सुणाबा को आणंद, पुरस्करा अर सम्मान पाबा को आणंद, एरकण्डीशन डब्बा मं जातरा करबा को आणंद..उस्यां राबड़ी का सबड़का लेबा को आणंदभी मामूली न्ह होवै। भालई सूं ई आणंद नै लेबा का चक्कर मं डाडी मूँछयां सब एकमेक ई क्यूं न हो जावै ?..या बात नाली छे के संत लोग यां आणंदां नै आणंद न मान'र दुख को कारण मानै छै। संतां का कैहबा सूं तो सांचो आणंद मौत होवै छै। क्यूंकि मौत होयां पाछै ई मुकति मलै छै। दुख पिड़ा, चन्ता फकर सब मर्यां सू ई मटै छै।

पण दादो भाी फूँदीलाल तो ी संसार मं जतरी तरै का आणंद मल सकै छैं, सबनै चाखबा मं चूकै ई कोईनै। उस्याँ टेस्ट करबो पुरी बात कोईनै पण फूँदीलाल की बात नाली छै। औरां का जीव बालबा नै ऊ हवनगरी समझे छो। कैवो छो के वूं के ऊपर ठाकर जी की घणी करिपा छै। भाया फूंदीलाल नै अपणा आणंद को पूरो पूरो स्वाद जद मलै छै, जद वू अपणा आणंद सूं ओरां का कालज्यान मं बेज पाड़ पाड़'र छाय-छलणी न्ह बणा दै। छानमून आणंद लेबा सूं वूं को सारो ई आणंद धूल धोयो हो जावै छै।

दूसार नै नीचे पटक'र आणंद मैसूस करबा नै फूंदीलाल एक कला मानै छै। फूंदीलाल की कमजोर्यां अर गलत्याँ पै कोई आंगली उठाबो चावै तो वूँ सूँ पैली ई फूंदीलाल सामनै हाला मिनख की काची बोदी कमजोरी नै पकड़'र जोर जोर सूँ ठा'का लगाबा जागा जावै छै। नाक नकस, चाल ढाल, डीलडोल, ज्यापांत, मोटा मोटा सबजेक्ट छै बात सरु करबां का। माई बाप, दादा-पढदादा का रैण-सैण की नुकल दादो फूंदीलाल अस्यां उतारै जाणै बापड़ो फूंद्यो दूँ जमारा में पैदा होयो होवै। अतरी सतां बी कोई नाटककार फूंदीलाल की सम्हाल न लै ई बात को म्है बी सोस छै।

असरी धरम की बातां नै समझबां मं खोपड़ी के के तांई घणो पाण आवै छै। अर खोपड़ी पै पाण अणाबो फूंदीलाल का बस मं कोईनै। तो बी सबसूँ पाको धरमातामा कैहलबा के तांई वूँ नै एक जोडी पैला लत्ता स्वाँर धर मैल्या छै। टैम टैम पै वांनी बी धारण कर लै छै। जस्याँ लोगां नै चकमो देब तांई खणगेट्यो रंग बदल लै छै। झूठ झूठ लोकदखावा के तांई थोड़ी घणी भगवान का फोटू वाली पोत्यां बी आलमारी मं पड़ी राखै छै। यांनै कदी कदी पढ़ बी लै तो बी गुणै कोईनै। संताँ की साँचटी साँची बातां बी वूंनै मसखर्यां ई लागै छै। फूंदीलाल कैवै छै के संत तो वै बणै छै जे दुखी अर कमजोर होवै छै। ज्यां की इन्दरयान मं तंत न्ह होवै..। तबी तो वै इन्दरयान का आणंद सूं दूरा रैबी की सीख बांटता फरै छै। जदक इन्दरयान को स्वाद ई दाद फूंदीलाल का जीवण कोआधार छै। चूकै ई कोइनै वू तो..। कैवे छै के ठाकुर जी नै वूं कै तांई घणा सारा रुप्या आणंद लेबा के तांी तो द्या छै। मर्यां पाछै काणा कांई होवै छै कांई पतो? जतरी मौज्यां मारणी होवै, जीवतां सतां ई मारलैणी चाइजै। अपणा ई बिचारनै ई आखरी सांच मान'र दादाो फूंद्यो संसार मं एक एक पल नै चटखारा ले ले'र दांतां सूं काटै छै। कोई लोई लुहाण होवै तो होवै फंदीलाल को कांई कसूर ?
या बात म्हूँ पैली ई कैह चुक्यो के फूदंीलाल का मन मं आणंद की उतपति दूसरा नै नीचो दखायां बना न्ह हो सकै ई वास्तै आप सब बरो मानै तो मानो, पण फूंदीलाल नै मन मं आणंद की धार पैदा करबां के ताँई अतरी सी खुरापात को करणी ई पड़ै छै। अब जीं भला मनख का मन मं बी आणंद लेवा की हूंस जाग री होवै तो वू फूंदीलाल को बतायो गेलो पकड़ै। गरीब, बेकसूर अर कमजोर नै धूला म पटक'र छाती पै पांव रोप'र चढ़ जावै..। उस्याँ आज का जमाना मं जादातर लोग बाग फूंदीवादी धरक-कमर नै पकड़'र ई जीवन जीर्या छै। नीचै पड्या धूल धोया नै कलाई पकड़'र उठावाला मनख तो ई दौलत परधान जुग मं कोसां-कोसां तांी आंख्या सूं न्ह दीखै। जठी झांकू जठी नजर पसारूं उंठी ई फूंदीलाल दीखै छै। कलजुग मं म्हारी नांई का बेखुरापाती इक्क्या-दुक्क्या मनख तो लंका का विभीषण की नांई होग्या। तो बी चन्ता की बात कोइनै, क्यूंकि रावम की टूंडी अमरत कुंड को भेद तो ये बिभीषण ई जाणै छै।
बैतीगंगामंगोता
दुनिया का बारा मं संत पुरष आदमकाल सूँ ई तरै तरै की टिप्पण्याँ करता आया छै। कोई ई स्रिष्टी नै महामाया-जाल' बतावै तो कोई कैह छै क' दुनिया महाठगिनी हम जानी कोई या भी कहै छै क' या जग कारी कुकरी जो छेड़े तो खाय। खैर, संत पुरुष कतनी साँची बातत कैहग्या या तो म्हूं जाणू पण, या बता झूठ कोइन 'क' कलजुग' मं संत, सद्भावी प्रकृति का लोग जरुर लातां मं रूदल्याँ, जावै छै। शासन की गद्दी मं कलजुग को प्रभाव आ जाबा सूँ वूँनै संत-सद्भावी लोग बैरी-दुसमन लागबा लागै छै, जदकि गद्दी तलै खाई खोदबा हाला फड़कंदी-चालबाज मिनख भी अपणा खासमखास लागै छै। अर ई वास्ते ही सत्ता की राबड़ी होवे चायै शासन की घूघरी वूँनै थे लोग ई सबड़का ले ले'र चाटबा मं आगै रैह छै।

कवि अर लेखकाँ का बार मं या बात सोची न्ह जा सकै। क्यूंकि ये तो खुद ई' आतमसंवाद साध'र संसार की असारता जाण लै छै। ई लेखे याँ नै शासन की राबड़ी अर घूघरी सूँ काँई मतलब..? या बात दूसरी छे क' ई समै मं पूरो को पूरो समाज मतलबी बणतो जार्यो छै।.. तो कवि अर लेखक बी काँह तांी बेमतलबी बण्या रह सकै छै ? कोई कोई तो मूँडो फोड़'र कैह बी दै छै क' म्हाँ भी तो मिनख छाँ, म्हाँक' भी बालबच्चा छै। आखर, भूखा भजन हो न्ह सकै..।

याह कैहबा हाला लेखक-कविवृन्द राजनीति की शम में पड़'र सत्ता का दूध्या थणाँ नै मूँडा मं ले'र छूँकबा तांई ताफड़ा करबा लागै छै। जद थण मऊंडा मं आ जावै छै तो लिख लिख'र गाबा लागै छै-कुड़सी छै दुनयि की माता, कुड़सी ही इक साँच छै..। कुडसी बदल जाबो तो आम बात छै। कुड़सी बदल्याँ पाछै मतलब का आँधा नै सुध बँधे छै क जे थण वै चूँखता जार्या छै, वै अब सूख चुक्या। होश सँभाल'र देखै छै तो पतो चालै छै क' दूध्या थण तो अब दूसरा का मूँडा मं जा चुक्या।

औसरवादी, मतलबी लोग भी तो दो धड़ां मं बँठ ग्या। वै जाणग्.या के आपणा राजस्थान मं दो तरै की कुड़स्याँ ई आवै-जावै छै। जद या कुड़सी आवै तो ई धड़ा का लोग थण चूँखे, जद व कुड़सी आवे तो वूँ घड़ा का आदमी घूघरी खावै। बारी बारी सूँ मजो लेबा तांई बैहती गंगा मं गोतो लगाता रैह छै। अपणा पाप धुपै न धुपै पण गंगा जुरीर मैली होती रै छै। फेर बी गंगा माई शरम मं पड्या लूला-पांगलान को उद्धार करती कदी थाकै कोइनै।
राजनीति अर सत्ता का दावपेचाँ सूँ कोसाँ दूरै रैहबाला संत-सद्भावी सुभाव का कवि-लेखक ई समै मं ठोकरां खावै तो कोई अचरज की बात कोइनै। जे बैहती गंगा मं गोतो लगाबा की कला न्ह जाणै, वू भलो मिनख कला, साहित्य अर संस्कृति को जाणकार कस्याँ हो सकै छै ? भागरीथ जस्यो मतदाता सत्ता की गंगा ने लोकतंत्र की धरती पै बार बार उतार लावै छै। घर बैठ्या गंगाजी आवै तो भी वू मं' झकोलो न्ह खावे तो मतदाता भी कांई करे। बिधाता नै रेदास, कबीर, निराला की हथेली मं एक टपको गंगाजल टपकाबा की जरुरत न्ह समझी। आखिर विधाता तो चोखी तणा जाणै छै क' ज्याँकी रंग रंग म गंगाजल बैहतो होवै, ज्यां की सांस सांस सूँ गंगाजल बरसतो होवै, वां के ताई गंगाजल पिलाबो। गंगाजल मं तो वै डूबोणा छै जे मदहोश, बेहोश अर गाफल छै। क्यूँकि गंगाजल को पाणी मर्या मुरदा न जीवत कर दै छै। सत्ता परिवर्तन सूँ र्प 'ली जे अधमर्या सा पड्‌या छा, वै अब गंगाजल का छिडकाव सूँ चेतना मं आ गया। ई समय मं जादातर लोग चमतकार नै नमस्कार करै छै। गल्या-सड्या, अधमर्या लोगा नै जीवता होता देख'र म्हारो एक मित्तर भी म्ह सूँ कैह छै-आ यार, आपण भी बैहती गंगा मं गोतो लगाल्याँ।

जमानो कानाबातीको...
जमानो कतनी रफतार सूँ बदलतो जार्यो छै। धरती का फोटा आसमान मँ सूँ चंदरमा खींचर्यो छै।..अर जद चंदरमा पै लाग्यो सिटेलाइट धरती का चालता फरता मनख्याँ का हालता-चालता, बोलता-बतलाता फोटू खाँच सकै छै तो क्यूँ न कोई भगवान पिरथी लोक का सगला जीवां का हालचाल न्ह मालम कर सकै?...
म्हनै अपमा विचार एक लेख मं उतार'र भाइला पंछीड़ा के तांई पढ़बा मं दे द्या। भाइलो पंछीड़ो म्हारा बड़ा भारी लेख नै देख'र झूंझलाग्यो। बोल्यो ओ लिखबो-पढ़बो तो गिया गुजर्या जमाना की बात छै आज का अपटूडेट मिनख ने पढ़बो लिखबो सोभा न्ह दै। आज जे भी बात होवलै वां मूंडा सूँ कान मं घाली दी जावै छै। म्हनै कही रे पंछीड़ा ! कान मं बाता घालतां घालतां काना का परदा फाट सकै छै। ई' लेखै म्हारा बिचार सूँ पढ़बो-लिखबो जादा बढ़िया बात छै।

म्हारी बात सुण'र पंछीड़ा नै दाँत बर्या द्या। म्हारी हाँसी उड़ातो हुयौ वू बोल्यो-'नूवा जमाना की बातां तू बी तो सीख। कान मं बाता ंघालबां सूं कान का परदा कोनी फाट सकै, क्यूंकै देख म्हारी पोकिट मं यो कानाबाती जन्तर छै। जीं क भी कान मं बात घालणी होवै वूँ का बटना दबाओ अर अपणो काम बणाओ।' भाइला पंछीड़ा ने बड़ी स्यान सूं कुड़ता का खल्ल्या मं सूं कानाबाती जंतर खाड्‌यो, बटण दबायो अर लागग्यो जायणै कुण का कानां मं बातां घलाबा..। म्हूं अणजाण बण'र वूँ का नखरा निरखतो परखतो र्यौ। म्हूँ आछीतरै सूँ जाणऊं छूँ क' भालिो पंछीड़ो पढ़ाई-लिखाई मं सरु सूँ ई कमजोर छो। इस्कूल मं माडसाब वूँनै नतकै मुरगो बणावै चै। इंतामां का दनां मं वू म्हारै तांई सेवड्या खिलावै छै..क्यूकै वूँनै महारा आखरम टींपणा होवै छा। टींप-टाप'र ई सालवार गरेस वरेस या सबलीमेंटरी सूं पास हो जावै छो..। इसकूल का गुरुजी अर घरवाला कैह छा पंछीड़ो तो गर्याल बैल छै। ई का भेजा मं तो गोबर भर्यो छै। आगै कोनै पढ़ सकै। जिंदग्याणी मं दुख पावैगो। भैस्या चरावैगो अर ई को भालिो शील पढ़ लिख'र ऊँचो मनख बण'र सुख साता मं रैवैगो..। बिच्चारा गुरुजी अर घरवाला नै कांई मालम छी कै नुवा जमाना मं सारी बाता उल्टी हो ज्यागी..। हाँ, कोई भलो मनख यो गीत जरुर गावै छोक चुगैगो दाणा पाणी, कौवा मोती खावैगो..।

ई नुवा जमाना मं भाईलो पंछीड़ो कार-बंगला मं मौज्या मारै छै। कुड़ता-जाकट की जेब मं काबानाती राखै छै। ौर मरजी पड़ै जद मरजी पड़ै जी ठौर अर मरजी पड़ै जीं का कानां मं बातां घालतो रैवे छै..। जदकै वूँ को इंटेलीजेंट मित्तर हाल भी आखर उकेरबा मं ई

लागर्यो छै। नुवा जमाना का कानाबाती जंतर वू क्सायं काम मं लै, ये सब तो सेहर मं ई इतरावै छै। सैहर सूं सौ कोस दूरै तो यां की रेज ई खतम हो जावै छै। ई वास्ते ये कानाबाती सैहर का मिनख्या का काना मं ई बाता घाल सकै चै। गाँव का गरीब का कानां मं बातां घालबो याँ की बस की बात कोइनै..क्यूंकै गाँव का गरीब कै कानाबाती का कोई नम्बर वम्बर ई न्ह रै..तो बता पंठीड़ा वै कांई दबावैगा अर कस्यां बातां कान मं घालैगा ?
म्हारी बात सुण'र पंछीड़ो सोचबा लाग्यो, फेर बोल्यो भालिा तू साँची कहै छै। थारी कागद पत्तरी को कोई ज्वाब कोइनै पण, अब थारा गाँव मं भी कानाबाती को इंतजाम कराबो जुररी होग्यो..म्हूं मिंतरी जी सूँ कैह'र आ बात संस मँ उठवाऊँगो..अर थारै जस्या गाँव का गरीब क' भी कानाबाती लगवाऊँगो..। ले ओ थारो लेख घमओ आछ्यो लाग्यो।





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